कृष्ण जन्माष्टमी का यह संयोग 2020 में बनेगा।
सभी पुराणों एवं
जन्माष्टमी सम्बन्धी ग्रन्थों से स्पष्ट होता है कि कृष्णजन्म के सम्पादन
का प्रमुख समय है 'श्रावण कृष्ण पक्ष की अष्टमी की अर्धरात्रि' (यदि
पूर्णिमान्त होता है तो भाद्रपद मास में किया जाता है)। यह तिथि दो प्रकार
की है–
1-- बिना रोहिणी नक्षत्र की तथा
2-- रोहिणी नक्षत्र वाली। इस बार रोहिणी नक्षत्र वाली कृष्ण जन्माष्टमी का योग बन रहा है
28-08-2013
को अष्टमी - 28:10:12 तक है नक्षत्र : कृतिका - 12:41:51 तक और नक्षत्र :
रोहिणी - 15:29:26 सूर्योदय पर कृतिका नक्षत्र और दिन के 12:50 बजे से
रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ हो जाएगा जो मध्यरात्रि में कृष्ण जन्म के समय तक
रहेगा।
कन्हैया का जन्म भाद्र मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को हुआ था।
उस दिन बुधवार था और रोहिणी नक्षत्र। यह संयोग सात साल बाद फिर बन रहा है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर 28 अगस्त 2013 को इस बार गजब का संयोग बन रहा है
ऐसा
संयोग के लिए कई-कई साल इंतजार करने पर आता है। वर्ष 2000 में से यह संयोग
चौथी बार हो रहा है। वर्ष दो हजार में भी यह संयोग आया था। उसके बाद 2003
और फिर 2006 में। अब 2013 के बाद यह संयोग 2020 में बनेगा।
जब-जब भी
धर्म का पतन हुआ है और धरती पर असुरों के अत्याचार बढ़े हैं तब-तब भगवान ने
पृथ्वी पर अवतार लेकर सत्य और धर्म की स्थापना की है। भाद्रपद माह की कृष्ण
पक्ष की अष्टमी की मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए
मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया था। श्रीकृष्ण कें श्रद्धालुओं
पूरे दिन व्रत रखकर नर-नारी तथा बच्चे रात्रि 12 बजे मन्दिरों में अभिषेक
होने पर पंचामृत ग्रहण करतें हैं
- उपवास की पूर्व रात्रि को हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
-
उपवास के दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं। पश्चात
सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और
ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें।
- इसके बाद जल, फल, कुश और गंध लेकर संकल्प करें :
ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥
अब मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए 'सूतिकागृह' नियत करें।
- तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव हो।
- इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें।
पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः निर्दिष्ट करना चाहिए।
फिर निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें :-
'प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः।
वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः।
सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते।'
अंत में रतजगा रखकर भजन-कीर्तन करें। साथ ही प्रसाद वितरण करके कृष्ण जन्माष्टमी पर्व मनाएं।
प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान केन्द्र सदर गजं बाजार मेरठ कैन्ट
जन्मपत्री कि विवेचना के सम्बन्ध में अगर आप चाहे तो फोन न० 9359109683 पर सम्पर्क कर सकते है