शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

यह व्रत शत्रुओं पर विजय हासिल करने के लिए अच्छा माना गया है


वर्ष 2014 में प्रदोष व्रत की तिथियाँ 


प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है और इस दिन भगवान शंकर की पूजा की जाती है. यह व्रत शत्रुओं पर विजय हासिल करने के लिए अच्छा माना गया है. प्रदोष काल वह समय कहलाता है जिस समय दिन और रात का मिलन होता है. भगवान शिव की पूजा एवं उपवास- व्रत के विशेष काल और दिन रुप में जाना जाने वाला यह प्रदोष काल बहुत ही उत्तम समय होता है. प्रदोष तिथि का बहुत महत्व है, इस समय की गई भगवान शिव की पूजा से अमोघ फल की प्राप्ति होती है.


 इस व्रत को यदि वार के अनुसार किया जाए तो अत्यधिक शुभ फल प्राप्त होते हैं. वार के अनुसार का अर्थ है कि जिस वार को प्रदोष व्रत पड़ता है उसी के अनुसार कथा पढ़नी चाहिए. इससे शुभ फलों में अधिक वृद्धि होती है. अलग-अलग कामनाओं की पूर्त्ति के लिए वारों के अनुसार प्रदोष व्रत करने से लाभ मिलता है.

प्रदोष काल में की गई पूजा एवं व्रत सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला माना गया है. इसी प्रकार प्रदोष काल व्रत हर माह के शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष के तेरहवें दिन या त्रयोदशी तिथि में रखा जाता है. कुछ विद्वानों के अनुसार द्वादशी एवं त्रयोदशी की तिथि भी प्रदोष तिथि मानी गई है.

वार के अनुसार प्रदोष व्रत 

  • रवि प्रदोष व्रत - आयु वृद्धि तथा अच्छे स्वास्थ्य लाभ के लिए
  • सोम प्रदोष व्रत - अभीष्ट कामना की पूर्त्ति के लिए
  • मंगल प्रदोष व्रत - रोगों से मुक्ति तथा स्वास्थ्य वृद्धि के लिए
  • बुध प्रदोष व्रत - सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्त्ति के लिए
  • गुरु प्रदोष व्रत - शत्रुओं के दमन तथा नाश के लिए
  • शुक्र प्रदोष व्रत - सुख-सौभाग्य और जीवनसाथी की समृद्धि के लिए
  • शनि प्रदोष व्रत - पुत्र प्राप्ति के लिए

वर्ष 2014 में प्रदोष व्रत की तिथियाँ 


दिनाँक दिन हिन्दु चांद्र मास
13 जनवरी सोमवार - सोम प्रदोष व्रत पौष शुक्ल पक्ष
28 जनवरी मंगलवार - भौम प्रदोष व्रत माघ कृष्ण पक्ष
12 फरवरी बुधवार माघ शुक्ल पक्ष
27 फरवरी बृहस्पतिवार फाल्गुन कृष्ण पक्ष
14 मार्च शुक्रवार फाल्गुन शुक्ल पक्ष
28 मार्च शुक्रवार चैत्र कृष्ण पक्ष
12 अप्रैल शनिवार चैत्र शुक्ल पक्ष
26 अप्रैल शनिवार वैशाख कृष्ण पक्ष
12 मई सोमवार - सोम प्रदोष व्रत वैशाख शुक्ल पक्ष
26 मई सोमवार - सोम प्रदोष व्रत ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष
10 जून मंगलवार - भौम प्रदोष व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष
24 जून मंगलवार - भौम प्रदोष व्रत आषाढ़ कृष्ण पक्ष
10 जुलाई बृहस्पतिवार आषाढ़ शुक्ल पक्ष
24 जुलाई बृहस्पतिवार श्रावण कृष्ण पक्ष
8 अगस्त शुक्रवार श्रावण शुक्ल पक्ष
22 अगस्त शुक्रवार भाद्रपद कृष्ण पक्ष
6 सितंबर शनिवार भाद्रपद शुक्ल पक्ष
21 सितंबर रविवार आश्विन कृष्ण पक्ष
6 अक्तूबर सोमवार आश्विन शुक्ल पक्ष
21 अक्तूबर मंगलवार - भौम प्रदोष व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष
4 नवंबर मंगलवार - भौम प्रदोष व्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष
20 नवंबर बृहस्पतिवार मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष
4 दिसंबर बृहस्पतिवार मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष
19 दिसंबर शुक्रवार पौष कृष्ण पक्ष 
मेरठ के शिव मन्दिर बाबा ओघडनाथ और सदर गजं बाजार के श्री वामन भगवान मन्दिर कि शिव पिन्डी पर जल चढाकर पुन्य फल प्रप्त कर सकते है मैने चमत्कार देखे है 
प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान एवं शिक्षा केन्द्र सदर गजं बाजार मेरठ कैन्ट मौ० नम्बर 09359109683

रविवार, 27 अक्तूबर 2013

इस वर्ष दीपावली 03 नवंबर 2013 को मनाई जाएगी । पूजा के लिए श्रेष्ठ स्थिर लग्न

दीपावली हिन्दूओं के मुख्य त्यौहारों में एक है। इस वर्ष दीपावली 03 नवंबर 2013 को मनाई जाएगी। दीपावली भगवान श्री राम के अयोध्या वापसी की खुशी में मनाई जाती है। इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा का विधान है।

पूजा विधि-- स्कंद पुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या के दिन प्रात: काल स्नान आदि से निवृत होकर सभी देवताओं की पूजा करनी चाहिए। इस दिन संभव हो तो दिन में भोजन नहीं करना चाहिए। इसके बाद प्रदोष काल में माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। माता की स्तुति और पूजा के बाद दीप दान करना चाहिए।
इस वर्ष दीपावली कार्तिक कृष्ण अमावस्या रविवार 3 नवंबर 2013 को सांयकाल सूर्यास्त समय 5 बजकर 45 मिनिट पर से रात्रि में 8 बजकर 20 मिनिट तक स्पष्ट प्रदोषकाल में महालक्ष्मी पूजन का श्रेष्ठ मुहूर्त है। 
पूजा के लिए श्रेष्ठ स्थिर लग्न
वृषभ लग्न - समय 18 बजकर 27 मिनट से 20 बजकर 25 मिनट तक
सिंह लग्न - समय रात्रि 24 बजकर 50 मिनट से 27 बजकर 3 मिनट तक
चौघड़िया के अनुसार महालक्ष्मी पूजन मुहूर्त
लाभ एवं अमृत - सुबह 9 बजकर 25 मिनट से 12 बजकर 17 मिनट तक
शुभ - दोपहर 13 बजकर 34 मिनट से 14 बजकर 58 मिनट तक
सांयकाल
शुभ और अमृत - 17 बजकर 45 मिनट से 20 बजकर 58 मिनट तक
-- दीपावली की रात को पूज्य श्रीगणेश को दूर्वा अर्पित करें। दीपावली के शुभ दिन यह उपाय करने से गणेशजी के साथ महालक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है।
--किसी में मंदिर झाड़ू का दान करें। 
--यदि आपके घर के आसपास कहीं महालक्ष्मी का मंदिर हो तो वहां गुलाब की सुगंध वाली अगरबत्ती का दान करें। या इत्र दान करे।
-- दीपावली की रात को सोने से पहले किसी चौराहे पर तेल का दीपक जलाएं और घर लौटकर आ जाएं। ध्यान रखें पीछे पलटकर न देखें।
-- दीपावली के दिन अशोक के पेड़ के पत्तों से वंदनद्वार बनाएं घर की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाएगी।
--- लक्ष्मी पूजन में सुपारी रखें। सुपारी पर लाल धागा लपेटकर अक्षत, कुमकुम, पुष्प आदि पूजन सामग्री से पूजा करें और पूजन के बाद इस सुपारी को तिजोरी में रखें।
- दीपावली की रात में लक्ष्मी पूजन के साथ ही अपनी दुकान, या ऐसे स्थान जहां आप व्यापार करते है कम्प्यूटर आदि पर काम करने वाले ऐसी चीजों की भी पूजा करें, जो आपकी कमाई का साधन बनते है।
-- दीपक में एक लौंग डालकर हनुमानजी की आरती करें। किसी मंदिर हनुमान मंदिर जाकर ऐसा दीपक भी जला सकते हैं। इस दिन दीपक सरसो के तेल का जलता है।
-- दीपावली के दिन झाड़ू अवश्य खरीदना चाहिए झाड़ू आपके घर से दरिद्रता निकलती है।
-- अगर आपका बुध खराब है तो आप हिजडे किन्नर से उसकी खुशी से एक रुपया लें और इस सिक्के को अपने पर्स में रखें।
-- - दीपावली पर लक्ष्मी पूजन में हल्दी की गांठ भी रखें। पूजन समाप्ति पर हल्दी की गांठ को घर में उस स्थान पर रखें जहां धन रखा जाता है।
-- एक मंत्र का जप कम से कम 108 बार करें। मंत्र: ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रववाय, धन-धान्यधिपतये धन-धान्य समृद्धि मम देहि दापय स्वाहा।
-- महालक्ष्मी के पूजन में गोमती चक्र भी रखना चाहिए। गोमती चक्र भी घर में धन संबंधी लाभ दिलाता है।
-- दीपावली की रात को शिव मंदिर जाएं और वहां शिवलिंग पर 300 ग्राम अक्षत यानी चावल चढ़ाएं। ध्यान रहें सभी चावल पूर्ण होने चाहिए। 
-- दीपावली की रात को पीपल के पेड़ के नीचे तेल का दीपक जलाएं। ध्यान दीपक लगाकर चुपचाप अपने घर लौट आए, पीछे पलटकर न देखें।
-- दीपावली की रात को महालक्ष्मी के पूजन में पीली कौडिय़ा भी रखनी चाहिए। ये कौडिय़ा पूजन में रखने से महालक्ष्मी बहुत ही जल्द प्रसन्न होती हैं। आपकी धन संबंधी सभी परेशानियां खत्म हो जाएंगी।
प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान केन्द्र मौबाईल नम्बर 09359109683

मंगलवार, 15 अक्तूबर 2013

करवा चौथ दिनांक: 22 अक्टूबर.2013 को , करवा चौथ सुहागिनों का महत्वपूर्ण त्योहार माना गया है। करवाचौथ के अवसर पर इस वर्ष चन्द्रमा अपनी प्रिय पत्नी रोहिणी के साथ होगा

करवा चौथ 2013 दिनांक: 22 अक्टूबर.2013 को 
करवा चौथ पूजा मुहूर्त = १७:३८ से १८:५५ शाम को ५ बजकर ३८ ‍िमनट से शाम ६ बजकर ५१ ‍िमनट तक अवधि = १ घण्टा १७ मिनट 
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ = २२/अक्टूबर/२०१३ को ०७:०६ बजे से 
चतुर्थी तिथि समाप्त = २३/अक्टूबर/२०१३ को ०८:५१ बजे तक



इस बार कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को पड़ने वाले करवा चौथ पर विशेष योग बन रहे हैं. चंद्रमा की 27 पत्नियां मानी जाती हैं. इनकी सभी पत्नियां नक्षत्र हैं. सभी पत्नियों में चन्द्रमा को रोहिणी सबसे प्रिय हैं. करवाचौथ के अवसर पर इस वर्ष चन्द्रमा अपनी प्रिय पत्नी रोहिणी के साथ होगा. जिससे चन्द्रमा का दर्शन अति कल्याणकारी होगा. चन्द्र रोहिणी के संयोग के साथ इस वर्ष मार्कंडेय और सत्यभामा योग भी बन रहा है, जिससे इस वर्ष करवा चौथ का महत्व कुछ और बढ़ गया है. माना जाता है कि यही विशिष्ट योग उस समय बना था जब भगवान श्री कृष्ण और सत्यभामा का मिलन हुआ था. चंद्रमा को अघ्र्य देते समय यदि महिलाएं सत्यभामा, मार्कंडेय और रोहिणी को भी अघ्र्य प्रदान करेंगी, तो उनका दांपत्य जीवन और भी प्रेम और सद्भाव बढ़ेगा. करवा चौथ के दिन स्त्रियों को श्रीकृष्ण की पत्नी रुक्मिणी को याद करते हुए रुक्मिणी मंगल का पाठ करना चाहिए.
करवा चौथ सुहागिनों का महत्वपूर्ण त्योहार माना गया है। इस पर्व पर सुहागिन महिलाएं हाथों में मेहंदी रचाकर, चूड़ियां पहनकर व सोलह श्रृंगार कर अपने पति की लंबी उम्र के लिए पूजा कर व्रत का पारायण करती हैं। सुहागिन या पतिव्रता स्त्रियों के लिए करवा चौथ बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत कार्तिक कृष्ण की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है। 
सरगी 
करवा चौथ में सरगी का काफी महत्व है. सरगी सास की तरफ से अपनी बहू को दी जाती है. इसका सेवन महिलाएं करवाचौथ के दिन सूर्य निकलने से पहले तारों की छांव में करती हैं. सरगी के रूप में सास अपनी बहू को विभिन्न खाद्य पदार्थ एवं वस्त्र इत्यादि देती हैं. सरगी, सौभाग्य और समृद्धि का रूप होती है. सरगी के रूप में खाने की वस्तुओं को जैसे फल, मीठाई आदि को व्रती महिलाएं व्रत वाले दिन सूर्योदय से पूर्व प्रात: काल में तारों की छांव में ग्रहण करती हैं. तत्पश्चात व्रत आरंभ होता है. अपने व्रत को पूर्ण करती हैं.
करवा चौथ व्रत विधि:-
- करवा चौथ की आवश्यक संपूर्ण पूजन सामग्री को एकत्र करें।
- व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें- ‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।’
- पूरे दिन निर्जला रहें।
- दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है।
- आठ पूरियों की अठावरी बनाएं, हलुआ बनाएं, पक्के पकवान बनाएं।
- पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं।
- गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं, चौक बनाकर आसन को उस पर रखें, गौरी को चुनरी ओढ़ाएं, बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें।
- जल से भरा हुआ लोटा रखें।
- वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें।
- रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं।
- गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें।
‘नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्‌। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥’
- करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें।
- कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें।
- तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें।
- रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें।
- इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें।
पूजन के पश्चात आस-पड़ोस की महिलाओं को करवा चौथ की बधाई देकर पर्व को संपन्न करें।

करवा चौथ एक दिन का त्योहार होता है जिसमे विवाहित महिलाएँ सूर्योदय से चन्द्रोदय तक व्रत रखती हैं। इस व्रत को करने से पतियों की भलाई, समृद्धि और लम्बी उम्र की कामना की जाती है। करवा चौथ उत्तरी भारतीय प्रदेशों में ज्यादा प्रसिद्ध है।
करवा चौथ के दिन सक्त उपवास रखा जाता है और ज्यादातर महिलाएँ पूरे दिन पानी तक का सेवन नहीं करती हैं। व्रत को चन्द्र दर्शन के बाद ही तोड़ा जाता है। 
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ = २२/अक्टूबर/२०१३ को ०७:०६ बजे से 
चतुर्थी तिथि समाप्त = २३/अक्टूबर/२०१३ को ०८:५१ बजे तक
करवा चौथ पूजा मुहूर्त = १७:३८ से १८:५५ शाम को ५ बजकर ३८ ‍िमनट से शाम ६ बजकर ५१ ‍िमनट तक अवधि = १ घण्टा १७ मिनट 
प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान एवं शिक्षा केन्द्र सदर गजं बाजार मेरठ कैन्ट मौबाईल नम्बर 09359109683

सोमवार, 14 अक्तूबर 2013

पापांकुशा एकादशी 15 अक्टूबर 2013 का दिन बहुत खास है

पापांकुशा एकादशी  15 अक्टूबर 2013 का दिन बहुत खास है
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2013 का दिन हिन्दी पंचांग के अनुसार बहुत खास है। वर्तमान में आश्विन माह का शुक्ल पक्ष चल रहा है और मंगलवार के दिन एकादशी आ रही है। इस एकादशी का नाम है पापांकुशा एकादशी। शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी पर कुछ सामान्य नियमों का भी पालन कर लिया जाए तो महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो जाती है। दीपावली से पहले ये एक खास दिन है जब देवी भगवान विष्णु और महालक्ष्मी की कृपा एक साथ प्राप्त की जा सकती है।
पापांकुशा एकादशी का महत्व भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था। इस एकादशी पर भगवान पद्मनाभ की विशेष पूजा की जानी चाहिए।
इस दिन विष्णु भगवान की पूजा की जाती है। जो भी व्यक्ति पापांकुशा एकादशी पर श्रीहरि की पूजा करता है उसके सभी पाप नष्ट होते हैं और स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है। विष्णु पूजा से महालक्ष्मी भी अति प्रसन्न होती हैं। शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी के नियम पालन करने पर जो पुण्य प्राप्त होता है वह कठिन तपस्या से भी प्राप्त होने वाले पुण्य से भी अधिक है। इस दिन 7 प्रकार के अनाज गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर की दाल का सेवन नहीं करना चाहिए।
इस व्रत से व्यक्ति के मातृपक्ष के दस और पितृपक्ष के दस पितरों को विष्णु लोक प्राप्त होता है। एकादशी व्रत में विष्णु का पूजन करने के लिए वह धूप, दीप, नारियल और पुष्प का प्रयोग किया जाता है। समस्त पापों का नाश करने वाली इस एकादशी का नाम पापांकुशा एकादशी है।
भगवान् विष्णु का भक्ति भाव से पूजन आदि करके भोग लगाते हैं। फिर यथासंभव ब्राह्मण को भोजन करा कर दान व दक्षिणा देते हैं। इस दिन किसी भी एक समय फलाहार किया जाता है। कथा है कि प्राचीन समय में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक बहेलिया रहता था। वह बड़ा क्रूर था। उसका सारा जीवन पाप कर्मों में बीता। जब उसका अंत समय आया, तो वह मृत्यु-भय से कांपता हुआ महर्षि अंगिरा के आश्रम में पहुंचकर याचना करने लगा- ‘‘हे ऋषिवर ! मैंने जीवन भर पाप कर्म ही किए हैं। कृपा कर मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मेरे सारे पाप मिट जाएं और मोक्ष की प्राप्ति हो जाए।’’ उसके निवेदन पर महर्षि अंगिरा ने उसे पापांकुशा एकादशी का व्रत करके प्रभु कृपा प्राप्त करने की सलाह दी। तत्पश्चात उसने पूर्ण श्रद्धा के साथ यह व्रत किया, और किए गए सारे पापों से छुटकारा पा लिया। 
प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान केन्द्र मौबाईल नम्बर 09359109683

स्त्री की पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा अवश्य पूर्ण 26 - 27 अक्टूबर 2013 को

26-27 अक्टूबर 2013 को तथा 23 नवम्बर 2013 को पुष्य नक्षत्र है 26 अक्टूबर 2013 को दोपहर 2.58 से 27 अक्टूबर 2013 को शाम 5.30 बजे तक।  22 को नवम्बर 2013 रात 10.2 से 23 नवम्बर 2013 की रात 12.35 बजे तक पुष्य नक्षत्र में असगन्ध की जड़ को उखाड़कर गाय के दूध के साथ सिल पर पीसकर पीने से दूध का आहार, ऋतुकाल के उपरांत शुद्ध होने पर पीते रहने से, स्त्री की पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा अवश्य पूर्ण हो जाती हैं | 


पुष्य नक्षत्र के पहले चरण के मालिक शनि-सूर्य हैं,जो कि जातक को मानसिक रूप से अस्थिर बनाते हैं,और जातक में अहम की भावना बढाते हैं,कार्य पिता के साथ होने से जातक को अपने आप कार्यों के प्रति स्वतन्त्रता नही मिलने से उसे लगता रहता है,पुष्य नक्षत्र के प्रथम चरण का अक्षर 'हू' है
पुष्य नक्षत्र के दूसरे चरण के मालिक शनि-बुध हैं,शनि कार्य और बुध बुद्धि का ग्रह है,दोनो मिलकर कार्य करने के प्रति बुद्धि को प्रदान करने के बाद जातक को होशियार बना देते है,जातक मे भावनात्मक पहलू खत्म सा हो जाता है और गम्भीरता का राज हो जाता है.द्वितीय चरण का अक्षर 'हे' है
तीसरे चरण के मालिक ग्रह शनि-शुक्र हैं,शनि जातक के पास धन और जायदाद देता है,तो शुक्र उसे सजाने संवारने की कला देता है.शनि अधिक वासना देता है,तो शुक्र भोगों की तरफ़ जाता है.तृ्तीय चरण का अक्षर 'हो' है.
चौथे चरण के मालिक शनि-मंगल है,जो जातक में जायदाद और कार्यों के प्रति टेकनीकल रूप से बनाने और किराये आदि के द्वारा धन दिलवाने की कोशिश करते हैं,शनि दवाई और मंगल डाक्टर का रूप बनाकर चिकित्सा के क्षेत्र में जातक को ले जाते हैं.चतुर्थ चरण का अक्षर 'ड' है. पुष्य नक्षत्र की योनि मेष है. पुष्य नक्षत्र को ऋषि मरीचि का वंशज माना गया है.
पुष्य को ऋग्वेद में तिष्य अर्थात शुभ या माँगलिक तारा भी कहते हैं विद्वान इस नक्षत्र को बहुत शुभ और कल्याणकारी मानते हैं. विद्वान इस नक्षत्र का प्रतीक चिह्न गाय का थन मानते हैं. उनके विचार से गाय का दूध पृ्थ्वी लोक का अमृ्त है. पुष्य नक्षत्र गाय के थन से निकले ताजे दूध सरीखा पोषणकारी, लाभप्रद व देह और मन को प्रसन्नता देने वाला होता है. 
प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान केन्द्र मौबाईल नम्बर 09359109683

शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

12 अक्तूबर 2013 को नवरात्र का आठवां दिन होगा और उसी दिन दुर्गाष्टमी भी पड़ेगी।

नवमी की शाम को ही विजयदशमी का पर्व मनाया जाना चाहिये।
इस वर्ष कई तिथियों में मतभेद रहे हैं। नवरात्र भी नौ हैं, लेकिन पहले नवरात्र से विजयदशमी तक के 10 दिन इस बार नहीं हैं। इस वर्ष नवमी को ही विजयदशमी मनाई जाएगी। दशहरे के दिन को साल के तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में शामिल किया जाता है. दशहरे के अलावा अन्य दो शुभ तिथियां चैत्र शुक्ल व कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा भी अन्य वर्ष की शुभ तिथियों में आती है. इस तिथि को सभी कार्यो के लिये शुभ माना जाता है.इस वर्ष 2013 में नवमी की शाम को ही विजयदशमी का पर्व मनाया जाना चाहिये।


मार्तंड पंचांग के अनुसार इस बार नवरात्र का शुभारंभ 5 अक्तूबर 2013 को होगा। प्रतिदिन 1 नवरात्र मनाया जाएगा। 12 अक्तूबर 2013 को नवरात्र का आठवां दिन होगा और उसी दिन दुर्गाष्टमी भी पड़ेगी।

प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान एवं शिक्षा केन्द्र सदर गजं बाजार मेरठ कैन्ट मौबाईल नम्बर 09359109683

गुरुवार, 10 अक्तूबर 2013

बत्तीस नामों की माला के एक अद्भुत गोपनीय रहस्यमय

सुबह सब कार्यो से निर्वित हो कर कुश या कम्बल के आसन पर बैठकर पूर्व या उत्तर की तरफ मुंह करके घी के दीपक के सामने इन नामों की 5/ 11/ 21 माला नौ ‍दिन करनी है और जगत माता से
अपनी मनोकामना पूर्ण करने की याचना करनी है।
दुर्गा दुर्गार्ति शमनी दुर्गापद्विनिवारिणी।
दुर्गामच्छेदिनी दुर्गसाधिनी दुर्गनाशिनी
दुर्गम ज्ञानदा दुर्गदैत्यलोकदवानला
दुर्गमा दुर्गमालोका दुर्गमात्मस्वरूपिणी
दुर्गमार्गप्रदा दुर्गमविद्या दुर्गमाश्रिता
दुर्गमज्ञानसंस्थाना दुर्गमध्यानभासिनी
दुर्गमोहा दुर्गमगा दुर्गमार्थस्वरूपिणी
दुर्गमासुरसंहन्त्री दुर्गमायुधधारिणी
दुर्गमाङ्गी दुर्गमाता दुर्गम्या दुर्गमेश्वरी
दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्लभा दुर्गधारिणी
नामावली ममायास्तु दुर्गया मम मानसः
पठेत् सर्व भयान्मुक्तो भविष्यति न संशयः
पठेत् सर्व भयान्मुक्तो भविष्यति न संशयः।
मां भगवती ने अपने ही बत्तीस नामों की माला के एक अद्भुत गोपनीय रहस्यमय किंतु चमत्कारी जप का उपदेश दिया जिसके करने से घोर से घोर विपत्ति, राज्यभय या दारुण विपत्ति से ग्रस्त मनुष्य भी भयमुक्त एवं सुखी हो जाता है।
प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान एवं शिक्षा केन्द्र सदर गजं बाजार मेरठ कैन्ट मौबाईल नम्बर 09359109683

13 अक्तूबर 2013 को नवमी की शाम को ही विजयदशमी का पर्व मनाया जाना चाहिये।

नवमी की शाम को ही विजयदशमी का पर्व मनाया जाना चाहिये।
इस वर्ष कई तिथियों में मतभेद रहे हैं। नवरात्र भी नौ हैं, लेकिन पहले नवरात्र से विजयदशमी तक के 10 दिन इस बार नहीं हैं। इस वर्ष नवमी को ही विजयदशमी मनाई जाएगी। दशहरे के दिन को साल के तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में शामिल किया जाता है. दशहरे के अलावा अन्य दो शुभ तिथियां चैत्र शुक्ल व कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा भी अन्य वर्ष की शुभ तिथियों में आती है. इस तिथि को सभी कार्यो के लिये शुभ माना जाता है.इस वर्ष 2013 में  नवमी की शाम को ही विजयदशमी का पर्व  मनाया जाना चाहिये।



मार्तंड पंचांग के अनुसार इस बार नवरात्र का शुभारंभ 5 अक्तूबर 2013 को होगा। प्रतिदिन 1 नवरात्र मनाया जाएगा। 12 अक्तूबर 2013 को नवरात्र का आठवां दिन होगा और उसी दिन दुर्गाष्टमी भी पड़ेगी।
दुर्गाष्टमी को अष्टमी तिथि सायं 6.26 बजे तक रहेगी। उसके बाद नवमी तिथि आ जाएगी। जो लोग इस नवरात्र में भी रामनवमी मनाते हैं, उन्हें दुर्गाष्टमी के दिन ही नवमी का पर्व मनाना चाहिये।
नवमी तिथि रविवार 13 अक्तूबर 2013 को दोपहर बाद 1.18 बजे तक रहेगी। इसके बाद दशमी तिथि प्रारंभ हो जाएगी। उसी शाम 13 अक्तूबर 2013 को रावण आदि के पुतलों का दहन होता है।  नवरात्र की नवमी 13 अक्तूबर 2013 को सवेरे मनाई जाएगी।
नवमी की शाम को ही विजयदशमी का पर्व  मनाया जाना चाहिये।  दशमी तिथि सोमवार 14 अक्टूबर 2013 को भी पूर्वान्ह 11.16 बजे तक विद्यमान है परन्तु उसी दिन शाम 4.26 बजे पंचक प्रारम्भ हो रहे हैं। रावण आदि के पुतलों का दहन पंचकों में वर्जित माना गया है, अत: नवमी की शाम को ही विजयदशमी का पर्व मना लिया जाना उत्तम होगा।

इस सप्ताह शनिवार, 12 अक्टूबर 2013 की बहुत चमत्कारी फल देने वाली है। शनिवार की शाम और रात नवरात्रि की अष्टमी व नवमी की शाम होगी। इस समय तुला राशि में स्थित शनि उच्च का है एवं साथ में राहु एवं बुध भी है। अत: नवरात्रि में शनि, राहु और बुध के प्रभाव से यह शनिवार बेहद खास बन रहा है। यह ग्रह स्थिति और यह योग करीब डेढ़ सौ साल बाद बन रहा है।
प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान केन्द्र मौबाईल नम्बर 09359109683


शनिवार, 5 अक्तूबर 2013

चमत्कारी उपाय Miracle

शनिवार की रात को हनुमानजी या शिवलिंग के समाने तेल का दीपक लगाएं।

 यह उपाय बहुत चमत्कारी उपाय है। ऐसा करने पर आपकी पैसों से जुड़ी सभी समस्याएं आसानी से दूर हो जाती हैं। जो लोग प्रतिदिन रात के समय शिवलिंग के सामने दीपक लगाते हैं उन्हें स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान एवं शिक्षा केन्द्र सदर गजं बाजार मेरठ कैन्ट मौबाईल नम्बर 09359109683

सोमवार, 30 सितंबर 2013

दैनिक जनवाणी समाचार पत्र मे मेरा लेख प्रकाशित हुआ दिनांक 30-9-2013 को अमावस्या के दिन र्शाद्ध कर पितृ को विदा करना चाहिए। इस बार यह अमावस्या चार अक्टूबर 2013 को पड़ रही है।

दैनिक जनवाणी समाचार पत्र मे मेरा लेख प्रकाशित हुआ दिनांक 30-9-2013 को अमावस्या के दिन र्शाद्ध कर पितृ को विदा करना चाहिए। इस बार यह अमावस्या चार अक्टूबर 2013 को पड़ रही है।
सर्वपितृमोक्ष अमावस्या के दिन लघु रुद्र का पाठ स्वयं करें या किसी योग्य पंडित से करवाएं। ये पाठ विधि-विधान पूर्वक होना चाहिए।
 - सफेद फूल, बताशे, कच्चा दूध, सफेद कपड़ा, चावल व सफेद मिठाई बहते हुए जल में प्रवाहित करें और कालसर्प दोष की शांति के लिए शेषनाग से प्रार्थना करें।
 - सुबह नहाने के बाद समीप स्थित शिव मंदिर जाएं और शिवलिंग पर तांबे का नाग चढ़ाएं। इसके बाद वहां बैठकर महामृत्युंजय मंत्र का जप करें और शिवजी से कालसर्प दोष मुक्ति के लिए प्रार्थना करें
- सर्वपितृमोक्ष अमावस्या (4 अक्टूबर 2013 , शुक्रवार) के दिन गरीबों को अपनी शक्ति के अनुसार दान करें व नवनाग स्तोत्र का पाठ करें।
 - श्राद्ध पक्ष के दौरान प्रतिदिन शाम को पीपल के वृक्ष की पूजा करें तथा पीपल के नीचे दीपक जलाएं।

शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

IndriYaani paranyahurindrayebhyah param manah

इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः ।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः ॥ – श्रीमदभगवद्गीता ३.४२
IndriYaani paranyahurindrayebhyah param manah
Mansastu para buddhiryo buddheh paratastu sah. – Shrimad Bhagvad Gita, 3.42

Implied Meaning : Here, Lord Krushna is telling about the human body, its subtle composition and its specialities. Along with the gross body, the senses, the mind, intellect , and soul together make up the human body. We can see the gross body and the senses through the gross eyes; mind, intellect and soul cannot be seen by us; however, they do exist. If we cut the body into pieces, even then we cannot see the mind; but if the body gets hurt, the mind too feels the pain, meaning the mind does exist. Similarly, intellect is subtler than the mind. For instance, if a friend incites one to drink liquor, saying consuming liquor once does not bring any harm; hence, drink it just for today, then those who possess a Saatvik (pure) intellect, immediately understand through the intellect that those addicted to drinking developed the addiction only after drinking liquor for the first time and liquor is Tamoguni (spiritually impure); hence, I do not have to drink it, while those who do not have a Saatvik intellect, gives in to the sweet talk of the friends and consumes a drink. Remember, only a Saatvik intellect is subtler than the mind and by controlling the mind, can show the right direction; otherwise the mind overpowers the intellect. It is written on a cigarette packet that ‘cigarette smoking is injurious to health’ and those who smoke, even read it; but because of the intellect not being Saatvik, mind doesn’t get controlled by it and this human body, whichshould be utilised for performing Sadhana, is destroyed through smoking. Any person who practices the mind through the intellect and provides it the right direction, is capable to indulge in one’s own welfare and the ability to indulge in universal welfare too is created in him. One who is controlled by the mind, easily passes on under the control of the senses and is trapped in the web of illusion; hence, keep practicing the mind. Those who attain victory over the mind are warriors in the true sense of the term and for this, a Saatvik intellect is a must. For the intellect to be Saatvik, acts like reading holy texts written by saints, attending Satsangs (pious company), doing Sadhana, remaining in the company of saints, keeping one’s behaviour and thoughts Saatvik, abiding as per Hindu Dharma, wearing clothes and eating Saatvik food must be followed. Whenever the mind confounds you, take the suggestions of a person spiritually more evolved than you. By and by, as the intellect keeps becoming Saatvik and mind stays controlled, our ego starts getting dissolved. Remember that ego exists because of mind and intellect, no sooner the dissolution of mind and intellect takes place, than the person immediately becomes self-realised. The principle of self is subtler than intellect; hence, to get introduced to it, carrying out this process with the intellect and ego assumes prime importance.
Meaning: Senses are known to be beyond the gross body, meaning supreme, powerful and subtle. Beyond these senses, beyond the mind is the intellect and that which is far beyond the intellect, is Atma (soul).
pt.R.K.Sharma Mo--09359109683

सोमवार, 16 सितंबर 2013

इस वर्ष 19 सितंबर 2013 को पूर्णिमा तिथि के दिन से श्राद्ध का आरंभ होगा.


भाद्रपद माह की पूर्णिमा से से आश्विन मास की अमावस्या तक का समय श्राद्ध कर्म के रुप में जाना जाता है. इस वर्ष 19 सितंबर 2013 को पूर्णिमा तिथि के दिन से श्राद्ध का आरंभ होगा. इस पितृपक्ष अवधि में पूर्वजों के लिए श्रद्धा पूर्वक किया गया दान तर्पण रुप में किया जाता है. पितृपक्ष पक्ष को  महालय या कनागत भी कहा जाता है. हिंदु धर्म मान्यता अनुसार सूर्य के कन्याराशि में आने पर पितर परलोक से उतर कर कुछ समय के लिए पृथ्वी पर अपने पुत्र - पौत्रों के यहां आते हैं.
श्रद्धा के साथ जो शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता है उसे "श्राद्ध" कहते हैं. श्राद्ध के महत्व के बारे में कई प्राचीन ग्रंथों तथा पुराणों में वर्णन मिलता है. श्राद्ध का पितरों के साथ बहुत ही घनिष्ठ संबंध है. पितरों को आहार तथा अपनी श्रद्धा पहुँचाने का एकमात्र साधन श्राद्ध है. मृतक के लिए श्रद्धा से किया गया तर्पण, पिण्ड तथा दान ही श्राद्ध कहा जाता है और जिस मृत व्यक्ति के एक वर्ष तक के सभी और्ध्व दैहिक क्रिया-कर्म सम्पन्न हो जाते हैं, उसी को "पितर" को पितर कहा जाता है.
शास्त्रों के अनुसार जिन व्यक्तियों का श्राद्ध मनाया जाता है, उनके नाम तथा गोत्र का उच्चारण करके मंत्रों द्वारा जो अन्न आदि उन्हें दिया समर्पित किया जाता है, वह उन्हें विभिन्न रुपों में प्राप्त होता है. जैसे यदि मृतक व्यक्ति को अपने कर्मों के अनुसार देव योनि मिलती है तो श्राद्ध के दिन ब्राह्मण को खिलाया गया भोजन उन्हें अमृत रुप में प्राप्त होता है. यदि पितर गन्धर्व लोक में है तो उन्हें भोजन की प्राप्ति भोग्य रुप में होती है. पशु योनि में है तो तृण रुप में, सर्प योनि में होने पर वायु रुप में, यक्ष रुप में होने पर पेय रुप में, दानव योनि में होने पर माँस रुप में, प्रेत योनि में होने पर रक्त रुप में तथा मनुष्य योनि होने पर अन्न के रुप में भोजन की प्राप्ति होती है.
अमावस्या का महत्व
पितरों के निमित्त अमावस्या तिथि में श्राद्ध व दान का विशेष महत्व है | सूर्य की सहस्र किरणों में से अमा नामक किरण प्रमुख है जिस के तेज से सूर्य समस्त लोकों को प्रकाशित करते हैं | उसी अमा में तिथि विशेष को चंद्र निवास करते हैं |इसी कारण से धर्म कार्यों में अमावस्या को विशेष महत्व दिया जाता है |पितृगण अमावस्या के दिन वायु रूप में  सूर्यास्त तक घर के द्वार पर उपस्थित रहते हैं तथा अपने स्वजनों से श्राद्ध की अभिलाषा करते हैं | पितृ पूजा करने से मनुष्य आयु ,पुत्र ,यश कीर्ति ,पुष्टि ,बल, सुख व धन धान्य प्राप्त करते हैं  |
श्राद्ध संस्कार
मृतक के लिए श्रद्धा से किया गया तर्पण, पिण्ड तथा दान ही श्राद्ध कहा जाता है और जिस मृत व्यक्ति के एक वर्ष तक के सभी और्ध्व दैहिक क्रिया-कर्म सम्पन्न हो जाते हैं, उसी को "पितर" को पितर कहा जाता है. वायु पुराण में लिखा है कि "मेरे पितर जो प्रेतरुप हैं, तिलयुक्त जौं के पिण्डों से वह तृप्त हों. साथ ही सृष्टि में हर वस्तु ब्रह्मा से लेकर तिनके तक, चाहे वह चर हो या अचर हो, मेरे द्वारा दिए जल से तृप्त हों".
श्राद्ध के मूल में उपरोक्त श्लोक की भावना छिपी हुई है. ऎसा माना जाता है कि श्राद्ध करने की परम्परा वैदिक काल के बाद से आरम्भ हुई थी. शास्त्रों में दी विधि द्वारा पितरों के लिए श्रद्धा भाव से मंत्रों के साथ दी गई दान-दक्षिणा ही श्राद्ध कहलाता है. जो कार्य पितरों के लिए "श्रद्धा" से किया जाए वह "श्राद्ध" है.

श्राद्ध का कारण
प्राचीन साहित्य के अनुसार सावन माह की पूर्णिमा से ही पितर पृथ्वी पर आ जाते हैं. वह नई आई कुशा की कोंपलों पर विराजमान हो जाते हैं. श्राद्ध अथवा पितृ पक्ष में व्यक्ति जो भी पितरों के नाम से दान तथा भोजन कराते हैं अथवा उनके नाम से जो भी निकालते हैं, उसे पितर सूक्ष्म रुप से ग्रहण करते हैं. ग्रंथों में तीन पीढि़यों तक श्राद्ध करने का विधान बताया गया है. पुराणों के अनुसार यमराज हर वर्ष श्राद्ध पक्ष में सभी जीवों को मुक्त कर देते हैं. जिससे वह अपने स्वजनों के पास जाकर तर्पण ग्रहण कर सकते हैं.

तीन पूर्वज पिता, दादा तथा परदादा को तीन देवताओं के समान माना जाता है. पिता को वसु के समान माना जाता है. रुद्र देवता को दादा के समान माना जाता है. आदित्य देवता को परदादा के समान माना जाता है. श्राद्ध के समय यही अन्य सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि माने जाते हैं. शास्त्रों के अनुसार यह श्राद्ध के दिन श्राद्ध कराने वाले के शरीर में प्रवेश करते हैं अथवा ऎसा भी माना जाता है कि श्राद्ध के समय यह वहाँ मौजूद रहते हैं और नियमानुसार उचित तरीके से कराए गए श्राद्ध से तृप्त होकर वह अपने वंशजों को सपरिवार सुख तथा समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं. श्राद्ध कर्म में उच्चारित मंत्रों तथा आहुतियों को वह अपने साथ ले जाकर अन्य पितरों तक भी पहुंचाते हैं.
--- श्राद्ध के हर कर्म में तिल की आवश्यकता होती है। श्राद्ध पक्ष में दान करने वाले को कुछ भी दान करते समय हाथ में काला तिल लेकर दान करना चाहिए।
---पितरों के निमित्त गुड़ एवं नमक का दान करना चाहिए। गरूड़ पुराण के अनुसार नमक के दान से यम का भय दूर होता है।
---पितरों को धोती एवं दुपट्टा का दान करना उत्तम माना गया है। वस्त्र दान से यमदूतों का भय समाप्त हो जाता है
---पितरों की प्रसन्नता हेतु इन चांदी, चावल, दूध वस्तुओं का दान किया जा सकता है
पितृ दोष से मिलेगी मुक्ति
--- ज्योतिष शास्त्र में सूर्य, चंद्र की पाप ग्रहों जैसे राहु और केतु से युति को पितृ दोष के रूप में व्यक्त किया गया है. इस युति से  मनुष्य जीव न भर केवल संघर्ष करता रहता है. मानसिक और भावनात्मक आघात जीवन पर्यंत उसकी परीक्षा लेते रहते हैं. पितृ पक्ष में अधोलोखित मंत्रों से, या किसी एक मंत्र से काली तिल, चावल और कुशा मिश्रित जल से तर्पण देने से घोर पितृ दोष भी शांत हो जाता है.
1. ॐ पितृदोष शमनं हीं ॐ स्वधा  2. ॐ क्रीं क्लीं सर्वपितृभ्यो स्वात्म सिद्धये ॐ फट!! 3. ॐ सर्व पितृ प्रं प्रसन्नो भव ॐ!! 4. ॐ पितृभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधानम: पितामहेभ्य: स्वाधायिभ्य: स्वधानम प्रपितामहेभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधानम: अक्षन्न पितरो मीमदन्त पितरोतीतृपन्त पितर: पितर: शुन्दध्वम ॐ पितृभ्यो नम

कौए को अर्पित भोजन            
श्राद्ध पक्ष में कौओं को आमंत्रित कर उन्हें श्राद्ध का भोजन खिलाया जाता है.  इसका एक कारण यह है कि हिन्दू पुराणों ने कौए को देवपुत्र माना है. एक कथा है कि, इन्द्र के पुत्र जयंत ने ही सबसे पहले कौए का रूप धारण किया था. त्रेता युग की घटना कुछ इस प्रकार है कि, जयंत ने कौऐ का रूप धर कर माता सीता को घायल कर दिया था. तब भगवान श्रीराम ने तिनके से ब्रह्मास्त्र चलाकर जयंत की आँख को क्षतिगग्रस्त कर दिया था. जयंत ने अपने कृत्य के लिये क्षमा मांगी तब राम ने उसे यह वरदान दिया की कि तुम्हें अर्पित किया गया भोजन पितरों को मिलेगा. बस तभी से श्राद्ध में कौओं को भोजन कराने की परंपरा चल पड़ी है.

प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान एवं शिक्षा केन्द्र मौबाईल नम्बर 09359109683

रविवार, 15 सितंबर 2013

सोमवार, 16 सितम्बर 2013 को श्री वामन जयंती वामन भगवान कि जयन्ती 85 साल के बाद वामन भगवान कि जयन्ती और कन्या संक्रान्ति एक

सोमवार, 16 सितम्बर 2013 को श्री वामन जयंती
पूर्णिमांत महीना : भाद्रपद पक्ष : शुक्ल पक्ष तिथि : द्वादशी - 23:30:57 नक्षत्र : श्रावण - 22:26:57 योग : अतिगण्ड - 17:22:07 राहुकाल : 07:48:21 - 09:19:26 अभिजीतमुहूर्त : 11:57:17 - 12:45:51
वामन भगवान कि जयन्ती 85 साल के बाद वामन भगवान कि जयन्ती और कन्या संक्रान्ति एक साथ शनिवार, 16 सितम्बर 1916 को भी कन्या संक्रान्ति थी  बुधवार, 16 सितम्बर 1925 को भी कन्या संक्रान्ति थी  रविवार, 16 सितम्बर 1928 को भी कन्या संक्रान्ति थी और इस दिन हि वामन भगवान कि जयन्ती भी थी 16 सितम्बर 1964 को भी कन्या संक्रान्ति थी 16 सितम्बर 1928 के बाद और 16 सितम्बर 2013 को भी कन्या संक्रान्ति के साथ साथ वामन भगवान कि जयन्ती भी है
वामन, ऋषि कश्यप तथा उनकी पत्नी अदिति के पुत्र थे। वह आदित्यों में बारहवें थे। मान्यता है कि वह इंद्र के छोटे भाई थे।
भागवत कथा के अनुसार, असुर राज बली अत्यंत दानवीर थे। दानशीलता के कारण बली की कीर्ति पताका के साथ-साथ प्रभाव इतना विस्तृत हो गया कि उन्होंने देवलोक पर अधिकार कर लिया। देवलोक पर अधिकार करने के कारण इंद्र की सत्ता जाती रही।
विष्णु ने देवलोक में इंद्र का अधिकार पुन: स्थापित करने के लिए यह अवतार लिया।
बली, विरोचन के पुत्र तथा प्रहलाद के पौत्र थे। यह भी कहा जाता है कि अपनी तपस्या तथा शक्ति के माध्यम से बली ने तीनों लोकों पर आधिपत्य हासिल कर लिया था।
विष्णु वामन रूप में एक बौने ब्राह्मण का वेष धारण कर बली के पास गए और उनसे अपने रहने के लिए तीन कदम के बराबर भूमि दान में मांगी। उनके हाथ में एक लकड़ी का छाता था। असुर गुरु शुक्राचार्य के चेताने के बावजूद बली ने वामन को वचन दे डाला।
वामन ने अपना आकार इतना बढ़ा लिया कि पहले ही कदम में पूरा भूलोक (पृथ्वी) नाप लिया। दूसरे कदम में देवलोक नाप लिया। इसके पश्चात ब्रह्मा ने अपने कमंडल के जल से भगवान वामन के पांव धोए। इसी जल से गंगा उत्पन्न हुईं। तीसरे कदम के लिए कोई भूमि बची ही नहीं। वचन के पक्के बली ने तब वामन को तीसरा कदम रखने के लिए अपना सिर प्रस्तुत कर दिया।
वामन बली की वचनबद्धता से अति प्रसन्न हुए। चूंकि बली के दादा प्रह्लाद, विष्णु के परम भक्त थे इसलिए वामन (विष्णु) ने बली को पाताल लोक देने का निश्चय किया और अपना तीसरा कदम बली के सिर पर रखा जिसके फलस्वरूप बली पाताल लोक में पहुंच गए।
एक और कथा के अनुसार, वामन ने बली के सिर पर अपना पैर रखकर उनको अमरत्व प्रदान कर दिया। विष्णु अपने विराट रूप में प्रकट हुए और राजा को महाबली की उपाधि प्रदान की, क्योंकि बली ने अपनी धर्मपरायणता तथा वचनबद्धता के कारण अपने आप को महात्मा साबित कर दिया था।
विष्णु ने महाबली को आध्यात्मिक आकाश जाने की अनुमति दे दी जहां उनका अपने सद्गुणी दादा प्रहलाद तथा अन्य दैवीय आत्माओं से मिलना हुआ।
वामनावतार के रूप में विष्णु ने बली को यह पाठ दिया कि दंभ तथा अहंकार से जीवन में कुछ हासिल नहीं होता है और यह भी कि धन-संपदा क्षणभंगुर होती है। ऐसा माना जाता है कि विष्णु के दिए वरदान के कारण प्रति वर्ष बली धरती पर अवतरित होते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उनकी प्रजा खुशहाल है।
इस दिन भगवान विष्णु रूपी कृष्ण का पूजन किया जाता है तथा गरीब ब्राह्मणों का भोजन कराएं व दान आदि दें यह व्रत करने से मौक्ष की प्राप्ति होती है घार्मिक क्षेत्र मे उन्नति के लिए तथा बाहरी यश और समाजिक नाम प्रसिद्धि को पाने के लिए इसका पूजन करते है विवाह दोष निवारण हेतु अथवा विवाह मे देरी हो रही हो या सही परिवार न मिल रहा हो
ग्रह शांति -: गुरू से सम्बंधिक बाधाएं दूर होती है
जन्म राशि -: धनु और मीन राशियों के लिए गुरू का नक्षत्र तथा गुरू महादशाओं के लिए
सौंदर्य -: विशेष आर्कषक स्वरूप तथा काया के लिए
धन और समृधि -:स्थिर लक्ष्मी तथा शुद्ध लक्ष्मी के लिए
नौकरी और व्यवसाय -: उच्च पद गारिमा वाला पद लाभ दायी व्यवसाय भी प्राप्ति के लिए
प्यार -: प्रेम सम्बन्ध सफल और प्रेमी - प्रेमिकाओं की प्राप्ति होती है
शादी -: विवाह की मनसा पूर्ण होती है
प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान एवं शिक्षा केन्द्र मौबाईल नम्बर 09359109683

वामन भगवान कि जयन्ती 85 साल के बाद वामन भगवान कि जयन्ती और कन्या संक्रान्ति एक साथ

सोमवार, 16 सितम्बर 2013 को श्री वामन जयंती
वामन भगवान कि जयन्ती 85 साल के बाद वामन भगवान कि जयन्ती और कन्या संक्रान्ति एक साथ 

शनिवार, 16 सितम्बर 1916 को भी कन्या संक्रान्ति थी  बुधवार, 16 सितम्बर 1925 को भी कन्या संक्रान्ति थी  रविवार, 16 सितम्बर 1928 को भी कन्या संक्रान्ति थी और इस दिन हि वामन भगवान कि जयन्ती भी थी 16 सितम्बर 1964 को भी कन्या संक्रान्ति थी 16 सितम्बर 1928 के बाद और 16 सितम्बर 2013 को भी कन्या संक्रान्ति के साथ साथ वामन भगवान कि जयन्ती भी है
 प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान एवं शिक्षा केन्द्र  मौबाईल नम्बर 09359109683

रविवार, 25 अगस्त 2013

कृष्ण जन्माष्टमी 2013 का यह संयोग 2020 में बनेगा।


कृष्ण जन्माष्टमी का यह संयोग 2020 में बनेगा।
सभी पुराणों एवं जन्माष्टमी सम्बन्धी ग्रन्थों से स्पष्ट होता है कि कृष्णजन्म के सम्पादन का प्रमुख समय है 'श्रावण कृष्ण पक्ष की अष्टमी की अर्धरात्रि' (यदि पूर्णिमान्त होता है तो भाद्रपद मास में किया जाता है)। यह तिथि दो प्रकार की है–
1-- बिना रोहिणी नक्षत्र की तथा
2--  रोहिणी नक्षत्र वाली। इस बार रोहिणी नक्षत्र वाली कृष्ण जन्माष्टमी का योग बन रहा है
28-08-2013 को अष्टमी - 28:10:12 तक है नक्षत्र : कृतिका - 12:41:51 तक और नक्षत्र : रोहिणी - 15:29:26 सूर्योदय पर कृतिका नक्षत्र और दिन के  12:50 बजे से रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ हो जाएगा जो मध्यरात्रि में कृष्ण जन्म के समय तक रहेगा। 
कन्हैया का जन्म भाद्र मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को हुआ था। उस दिन बुधवार था और रोहिणी नक्षत्र। यह संयोग सात साल बाद फिर बन रहा है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर 28 अगस्त 2013 को इस बार गजब का संयोग बन रहा है
ऐसा संयोग के लिए कई-कई साल इंतजार करने पर आता है। वर्ष 2000 में से यह संयोग चौथी बार हो रहा है। वर्ष दो हजार में भी यह संयोग आया था। उसके बाद 2003 और फिर 2006 में। अब 2013 के बाद यह संयोग 2020 में बनेगा। 
जब-जब भी धर्म का पतन हुआ है और धरती पर असुरों के अत्याचार बढ़े हैं तब-तब भगवान ने पृथ्वी पर अवतार लेकर सत्य और धर्म की स्थापना की है। भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया था। श्रीकृष्ण कें श्रद्धालुओं पूरे दिन व्रत रखकर नर-नारी तथा बच्चे रात्रि 12 बजे मन्दिरों में अभिषेक होने पर पंचामृत ग्रहण करतें हैं
- उपवास की पूर्व रात्रि को हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- उपवास के दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं। पश्चात सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्‌पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें।
- इसके बाद जल, फल, कुश और गंध लेकर संकल्प करें :
ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥
अब मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए 'सूतिकागृह' नियत करें।
- तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव हो।
- इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें।
पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः निर्दिष्ट करना चाहिए।
फिर निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें :-
'प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः।
वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः।
सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते।'
अंत में रतजगा रखकर भजन-कीर्तन करें। साथ ही प्रसाद वितरण करके कृष्‍ण जन्माष्टमी पर्व मनाएं। 


प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान केन्द्र सदर गजं बाजार मेरठ कैन्ट
जन्मपत्री कि विवेचना के सम्बन्ध में अगर आप चाहे तो फोन न० 9359109683 पर सम्पर्क कर सकते है

बुधवार, 31 जुलाई 2013

शिवलिंग की वेदी, महावेदी और लिंग भगवान शंकर है। सिर्फ लिंग की ही पूजा करने से त्रिदेव एंव आदि शक्ति की पूजा हो जाती है।

शिवलिंग की वेदी, महावेदी और लिंग भगवान शंकर है। सिर्फ लिंग की ही पूजा करने से त्रिदेव एंव आदि शक्ति की पूजा हो जाती है। शान्ति और परम आनन्द का प्रमुख स्रोत है, ईश्वर सभी उत्कृष्ण गुणों से परिपूर्ण है। प्रत्येक मनुष्य अपना कल्याण चाहता है, यह उसकी स्वाभाविक प्रकृति है। सारी सृष्टि ही शिवलिंग है। इसका एक-एक कण शिवलिंग में समाहित है। ईश्वर ने अपने समस्त पृ्रकृति में फैले हुये अपने दिव्य गुणों का लघु रूप दिया तो पहले मानव की उत्पत्ति हुयी। शिवलिंग को लिंग और योनि के मिलन के रूप में नहीं अपितु इसे सृष्टि सजृन के प्रतीक रूप में देखना चाहिए।


हमेशा शिवलिंग की परिक्रमा बांयी ओर से प्रारम्भ कर जलधारी के निकले हुए भाग यानि स्रोत तक फिर विपरीत दिशा में लौट दूसरे सिरे तक आकर परिक्रमा पूरी करें। जलधारी या अरघा को पैरों से लाघना नहीं चाहिए क्योंकि माना जाता है कि उस स्थान पर उर्जा और शक्ति का भण्डार होता है।
जलधारी को लांघते समय पैरों के फैलने से वार्य या रज इनसे जुड़ी विभिन्न प्रकार की शारीरिक क्रियाओं पर शक्तिशाली उर्जा का दुष्प्रभाव पड़ता है। अतः इस देव-दोष से बचना चाहिए।
शिवलिंग भगवान शंकर का एक अभिन्न अंग है, जो अति गर्म है, जिस कारण शिवलिंग पर जल चढ़ाने की प्रथा प्रचलित है। मन्दिरों में शिवलिंग के उपर एक घड़ा रखा होता है जिसमें से पानी की एक-2 बूंद शिवलिंग पर गिरा करती है जिससे शिवलिंग की गर्मी धीरे-धीरे शान्त होकर उसमें से सकारात्मतक उर्जा प्रवाहित होने लगती है। जो भक्तगणों के कष्टों को दूर करती है। घर में शिवलिंग रखने से इस प्रकार की व्यवस्था न हो पाने के कारण उसमें से निकलने वाली गर्म उर्जा परिवार के लोगों को खासकर महिलाओं को नुकसान पहुंचाती है। जैसे- सिर दर्द, स्त्री रोग, जोडो में दर्द, मन अशांत, घरेलू झगड़े, आर्थिक अस्थिरिता आदि प्रकार की समस्यायें घर में बनी रहती है।
घर में शिवलिंग रखने के इच्छुक है तो विधिवत स्थापना कराये और शिवलिंग के स्थापना स्थल पर ऐसी व्यवस्था करे कि शिवलिंग पर घड़ा उपर रख दे जिसमें से पानी की एक-2 बूंद शिवलिंग पर गिरती रहे।
कब करें महामृत्युंजय मंत्र जाप? जब आप पर बहुत सी बाधाएँ हो
महामृत्युंजय मंत्र जपने से अकाल मृत्यु तो टलती ही है, आरोग्यता की भी प्राप्ति होती है। स्नान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक्त इस मंत्र का जप करने से स्वास्थ्य-लाभ होता है। दूध में निहारते हुए इस मंत्र का जप किया जाए और फिर वह दूध पी लिया जाए तो यौवन की सुरक्षा में भी सहायता मिलती है। साथ ही इस मंत्र का जप करने से बहुत सी बाधाएँ दूर होती हैं, अत: इस मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए।
निम्नलिखित स्थितियों में इस मंत्र का जाप कराया जाता है-
(1) ज्योतिष के अनुसार यदि जन्म, मास, गोचर और दशा, अंतर्दशा, स्थूलदशा आदि में ग्रहपीड़ा होने का योग है।
(2) किसी महारोग से कोई पीड़ित होने पर।
(3) जमीन-जायदाद के बँटबारे की संभावना हो।
(4) हैजा-प्लेग आदि महामारी से लोग मर रहे हों।
(5) राज्य या संपदा के जाने का अंदेशा हो।
(6) धन-हानि हो रही हो।
(7) मेलापक में नाड़ीदोष, षडाष्टक आदि आता हो।
(8) राजभय हो।
(9) मन धार्मिक कार्यों से विमुख हो गया हो।
(10) राष्ट्र का विभाजन हो गया हो।
(11) मनुष्यों में परस्पर घोर क्लेश हो रहा हो।
(12) त्रिदोषवश रोग हो रहे हों।
महामृत्युंजय जप मंत्र: महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है। महामृत्युंजय मंत्र के जप व उपासना के तरीके आवश्यकता के अनुरूप होते हैं। काम्य उपासना के रूप में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। जप के लिए अलग-अलग मंत्रों का प्रयोग होता है। जप विधि, विभिन्न यंत्र-मंत्र, जप आदि के लिये आप हमारे सस्थान भृगु ज्योतिष अनुसन्धान एवं शिक्षा केन्द्र से सम्पर्क कर सकते है
प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान एवं शिक्षा केन्द्र सदर गजं बाजार मेरठ कैन्ट 09359109683

शनिवार, 27 जुलाई 2013

महामृत्युंजय मंत्र जाप कब करें - जब आप पर बहुत सी बाधाएँ हो

महामृत्युंजय मंत्र जपने से अकाल मृत्यु तो टलती ही है, आरोग्यता की भी प्राप्ति होती है। स्नान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक्त इस मंत्र का जप करने से स्वास्थ्य-लाभ होता है। दूध में निहारते हुए इस मंत्र का जप किया जाए और फिर वह दूध पी लिया जाए तो यौवन की सुरक्षा में भी सहायता मिलती है। साथ ही इस मंत्र का जप करने से बहुत सी बाधाएँ दूर होती हैं, अत: इस मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए।


निम्नलिखित स्थितियों में इस मंत्र का जाप कराया जाता है-
(1) ज्योतिष के अनुसार यदि जन्म, मास, गोचर और दशा, अंतर्दशा, स्थूलदशा आदि में ग्रहपीड़ा होने का योग है।
(2) किसी महारोग से कोई पीड़ित होने पर।
(3) जमीन-जायदाद के बँटबारे की संभावना हो।
(4) हैजा-प्लेग आदि महामारी से लोग मर रहे हों।
(5) राज्य या संपदा के जाने का अंदेशा हो।
(6) धन-हानि हो रही हो।
(7) मेलापक में नाड़ीदोष, षडाष्टक आदि आता हो।
(8) राजभय हो।
(9) मन धार्मिक कार्यों से विमुख हो गया हो।
(10) राष्ट्र का विभाजन हो गया हो।
(11) मनुष्यों में परस्पर घोर क्लेश हो रहा हो।
(12) त्रिदोषवश रोग हो रहे हों।
महामृत्युंजय जप मंत्र: महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है। महामृत्युंजय मंत्र के जप व उपासना के तरीके आवश्यकता के अनुरूप होते हैं। काम्य उपासना के रूप में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। जप के लिए अलग-अलग मंत्रों का प्रयोग होता है। यहाँ हमने आपकी सुविधा के लिए संस्कृत में जप विधि, विभिन्न यंत्र-मंत्र, जप में सावधानियाँ, स्तोत्र आदि उपलब्ध कराए हैं। इस प्रकार आप यहाँ इस अद्भुरत जप के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
महामृत्युंजय जपविधि – (मूल संस्कृत में) कृतनित्यक्रियो जपकर्ता स्वासने पांगमुख उदहमुखो वा उपविश्य धृतरुद्राक्षभस्मत्रिपुण्ड्र: । आचम्य । प्राणानायाम्य। देशकालौ संकीत्र्य मम वा यज्ञमानस्य अमुक कामनासिद्धयर्थ श्रीमहामृत्युंजय मंत्रस्य अमुक संख्यापरिमितं जपमहंकरिष्ये वा कारयिष्ये।
॥ इति प्रात्यहिकसंकल्प:॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॐ गुरवे नम:। ॐ गणपतये नम:। ॐ इष्टदेवतायै नम:। इति नत्वा यथोक्तविधिना भूतशुद्धिं प्राण प्रतिष्ठां च कुर्यात्‌।
भूतशुद्धि:विनियोग: ॐ तत्सदद्येत्यादि मम अमुक प्रयोगसिद्धयर्थ भूतशुद्धिं प्राण प्रतिष्ठां च करिष्ये। ॐ आधारशक्ति कमलासनायनम:। इत्यासनं सम्पूज्य। पृथ्वीति मंत्रस्य। मेरुपृष्ठ ऋषि;, सुतलं छंद: कूर्मो देवता, आसने विनियोग:।
आसन: ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय माँ देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌। गन्धपुष्पादिना पृथ्वीं सम्पूज्य कमलासने भूतशुद्धिं कुर्यात्‌। अन्यत्र कामनाभेदेन। अन्यासनेऽपि कुर्यात्‌।
पादादिजानुपर्यंतं पृथ्वीस्थानं तच्चतुरस्त्रं पीतवर्ण ब्रह्मदैवतं वमिति बीजयुक्तं ध्यायेत्‌। जान्वादिना भिपर्यन्तमसत्स्थानं तच्चाद्र्धचंद्राकारं शुक्लवर्ण पद्मलांछितं विष्णुदैवतं लमिति बीजयुक्तं ध्यायेत्‌। नाभ्यादिकंठपर्यन्तमग्निस्थानं त्रिकोणाकारं रक्तवर्ण स्वस्तिकलान्छितं रुद्रदैवतं रमिति बीजयुक्तं ध्यायेत्‌। कण्ठादि भूपर्यन्तं वायुस्थानं षट्कोणाकारं षड्बिंदुलान्छितं कृष्णवर्णमीश्वर दैवतं यमिति बीजयुक्तं ध्यायेत्‌। भूमध्यादिब्रह्मरन्ध्रपर्यन्त माकाशस्थानं वृत्ताकारं ध्वजलांछितं सदाशिवदैवतं हमिति बीजयुक्तं ध्यायेत्‌। एवं स्वशरीरे पंचमहाभूतानि ध्यात्वा प्रविलापनं कुर्यात्‌। यद्यथा-पृथ्वीमप्सु। अपोऽग्नौअग्निवायौ वायुमाकाशे। आकाशं तन्मात्राऽहंकारमहदात्मिकायाँ मातृकासंज्ञक शब्द ब्रह्मस्वरूपायो हृल्लेखाद्र्धभूतायाँ प्रकृत्ति मायायाँ प्रविलापयामि, तथा त्रिवियाँ मायाँ च नित्यशुद्ध बुद्धमुक्तस्वभावे स्वात्मप्रकाश रूपसत्यज्ञानाँनन्तानन्दलक्षणे परकारणे परमार्थभूते परब्रह्मणि प्रविलापयामि।तच्च नित्यशुद्धबुद्धमुक्तस्वभावं सच्चिदानन्दस्वरूपं परिपूर्ण ब्रह्मैवाहमस्मीति भावयेत्‌। एवं ध्यात्वा यथोक्तस्वरूपात्‌ ॐ कारात्मककात्‌ परब्रह्मण: सकाशात्‌ हृल्लेखाद्र्धभूता सर्वमंत्रमयी मातृकासंज्ञिका शब्द ब्रह्मात्मिका महद्हंकारादिप-न्चतन्मात्रादिसमस्त प्रपंचकारणभूता प्रकृतिरूपा माया रज्जुसर्पवत्‌ विवत्र्तरूपेण प्रादुर्भूता इति ध्यात्वा। तस्या मायाया: सकाशात्‌ आकाशमुत्पन्नम्‌, आकाशाद्वासु;, वायोरग्नि:, अग्नेराप:, अदभ्य: पृथ्वी समजायत इति ध्यात्वा। तेभ्य: पंचमहाभूतेभ्य: सकाशात्‌ स्वशरीरं तेज: पुंजात्मकं पुरुषार्थसाधनदेवयोग्यमुत्पन्नमिति ध्यात्वा। तस्मिन्‌ देहे सर्वात्मकं सर्वज्ञं सर्वशक्तिसंयुक्त समस्तदेवतामयं सच्चिदानंदस्वरूपं ब्रह्मात्मरूपेणानुप्रविष्टमिति भावयेत्‌ ॥
॥ इति भूतशुद्धि: ॥
अथ प्राण-प्रतिष्ठा विनियोग: अस्य श्रीप्राणप्रतिष्ठामंत्रस्य ब्रह्माविष्णुरुद्रा ऋषय: ऋग्यजु: सामानि छन्दांसि, परा प्राणशक्तिर्देवता, ॐ बीजम्‌, ह्रीं शक्ति:, क्रौं कीलकं प्राण-प्रतिष्ठापने विनियोग:। डं. कं खं गं घं नमो वाय्वग्निजलभूम्यात्मने हृदयाय नम:। ञं चं छं जं झं शब्द स्पर्श रूपरसगन्धात्मने शिरसे स्वाहा। णं टं ठं डं ढं श्रीत्रत्वड़ नयनजिह्वाघ्राणात्मने शिखायै वषट्। नं तं थं धं दं वाक्पाणिपादपायूपस्थात्मने कवचाय हुम्‌। मं पं फं भं बं वक्तव्यादानगमनविसर्गानन्दात्मने नेत्रत्रयाय वौषट्। शं यं रं लं हं षं क्षं सं बुद्धिमानाऽहंकार-चित्तात्मने अस्राय फट्। एवं करन्यासं कृत्वा ततो नाभित: पादपर्यन्तम्‌ आँ नम:। हृदयतो नाभिपर्यन्तं ह्रीं नम:। मूद्र्धा द्विहृदयपर्यन्तं क्रौं नम:। ततो हृदयकमले न्यसेत्‌। यं त्वगात्मने नम: वायुकोणे। रं रक्तात्मने नम: अग्निकोणे। लं मांसात्मने नम: पूर्वे । वं मेदसात्मने नम: पश्चिमे । शं अस्थ्यात्मने नम: नैऋत्ये। ओंषं शुक्रात्मने नम: उत्तरे। सं प्राणात्मने नम: दक्षिणे। हे जीवात्मने नम: मध्ये एवं हदयकमले।
अथ ध्यानम्‌रक्ताम्भास्थिपोतोल्लसदरुणसरोजाङ घ्रिरूढा कराब्जै: पाशं कोदण्डमिक्षूदभवमथगुणमप्यड़ कुशं पंचबाणान्‌। विभ्राणसृक्कपालं त्रिनयनलसिता पीनवक्षोरुहाढया देवी बालार्कवणां भवतुशु भकरो प्राणशक्ति: परा न: ॥ ॥ इति प्राण-प्रतिष्ठा ॥जप‍
अथ महामृत्युंजय जपविधि संकल्प तत्र संध्योपासनादिनित्यकर्मानन्तरं भूतशुद्धिं प्राण प्रतिष्ठां च कृत्वा प्रतिज्ञासंकल्प कुर्यात ॐ तत्सदद्येत्यादि सर्वमुच्चार्य मासोत्तमे मासे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे अमुकगोत्रो अमुकशर्मा/वर्मा/गुप्ता मम शरीरे ज्वरादि-रोगनिवृत्तिपूर्वकमायुरारोग्यलाभार्थं वा धनपुत्रयश सौख्यादिकिकामनासिद्धयर्थ श्रीमहामृत्युंजयदेव प्रीमिकामनया यथासंख्यापरिमितं महामृत्युंजयजपमहं करिष्ये।
विनियोग अस्य श्री महामृत्युंजयमंत्रस्य वशिष्ठ ऋषि:, अनुष्टुप्छन्द: श्री त्र्यम्बकरुद्रो देवता, श्री बीजम्‌, ह्रीं शक्ति:, मम अनीष्ठसहूयिर्थे जपे विनियोग:।
अथ यष्यादिन्यास: ॐ वसिष्ठऋषये नम: शिरसि। अनुष्ठुछन्दसे नमो मुखे। श्री त्र्यम्बकरुद्र देवतायै नमो हृदि। श्री बीजाय नमोगुह्ये। ह्रीं शक्तये नमो: पादयो:।
॥ इति यष्यादिन्यास: ॥
अथ करन्यास: ॐ ह्रीं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: त्र्यम्बकं ॐ नमो भगवते रुद्रायं शूलपाणये स्वाहा अंगुष्ठाभ्यं नम:।
ॐ ह्रीं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: यजामहे ॐ नमो भगवते रुद्राय अमृतमूर्तये माँ जीवय तर्जनीभ्याँ नम:।
ॐ ह्रौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: सुगन्धिम्पुष्टिवद्र्धनम्‌ ओं नमो भगवते रुद्राय चन्द्रशिरसे जटिने स्वाहा मध्यामाभ्याँ वषट्।
ॐ ह्रौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: उर्वारुकमिव बन्धनात्‌ ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिपुरान्तकाय हां ह्रीं अनामिकाभ्याँ हुम्‌।
ॐ ह्रौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: मृत्योर्मुक्षीय ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिलोचनाय ऋग्यजु: साममन्त्राय कनिष्ठिकाभ्याँ वौषट्।
ॐ ह्रौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: मामृताम्‌ ॐ नमो भगवते रुद्राय अग्निवयाय ज्वल ज्वल माँ रक्ष रक्ष अघारास्त्राय करतलकरपृष्ठाभ्याँ फट् ।
॥ इति करन्यास: ॥
अथांगन्यास: ॐ ह्रौं ॐ जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: त्र्यम्बकं ॐ नमो भगवते रुद्राय शूलपाणये स्वाहा हृदयाय नम:।
ॐ ह्रौं ओं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: यजामहे ॐ नमो भगवते रुद्राय अमृतमूर्तये माँ जीवय शिरसे स्वाहा।
ॐ ह्रौं ॐ जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: सुगन्धिम्पुष्टिवद्र्धनम्‌ ॐ नमो भगवते रुद्राय चंद्रशिरसे जटिने स्वाहा शिखायै वषट्।
ॐ ह्रौं ॐ जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: उर्वारुकमिव बन्धनात्‌ ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिपुरांतकाय ह्रां ह्रां कवचाय हुम्‌।
ॐ ह्रौं ॐ जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: मृत्यार्मुक्षीय ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिलोचनाय ऋग्यजु साममंत्रयाय नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ ह्रौं ॐ जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: मामृतात्‌ ॐ नमो भगवते रुद्राय अग्नित्रयाय ज्वल ज्वल माँ रक्ष रक्ष अघोरास्त्राय फट्। ॥ इत्यंगन्यास: ॥
अथाक्षरन्यास: त्र्यं नम: दक्षिणचरणाग्रे। बं नम:, कं नम:, यं नम:, जां नम: दक्षिणचरणसन्धिचतुष्केषु । मं नम: वामचरणाग्रे । हें नम:, सुं नम:, गं नम:, धिं नम, वामचरणसन्धिचतुष्केषु । पुं नम:, गुह्ये। ष्टिं नम:, आधारे। वं नम:, जठरे। द्र्धं नम:, हृदये। नं नम:, कण्ठे। उं नम:, दक्षिणकराग्रे। वां नम:, रुं नम:, कं नम:, मिं नम:, दक्षिणकरसन्धिचतुष्केषु। वं नम:, बामकराग्रे। बं नम:, धं नम:, नां नम:, मृं नम: वामकरसन्धिचतुष्केषु। त्यों नम:, वदने। मुं नम:, ओष्ठयो:। क्षीं नम:, घ्राणयो:। यं नम:, दृशो:। माँ नम: श्रवणयो: । मृं नम: भ्रवो: । तां नम:, शिरसि। ॥ इत्यक्षरन्यास ॥ अथ पदन्यास: त्र्यम्बकं शरसि। यजामहे भ्रुवो:। सुगन्धिं दृशो: । पुष्टिवर्धनं मुखे। उर्वारुकं कण्ठे। मिव हृदये। बन्धनात्‌ उदरे। मृत्यो: गुह्ये । मुक्षय उर्वों: । माँ जान्वो: । अमृतात्‌ पादयो:।
॥ इति पदन्यास ॥
मृत्युंजयध्यानम्‌ हस्ताभ्याँ कलशद्वयामृतसैराप्लावयन्तं शिरो, द्वाभ्याँ तौ दधतं मृगाक्षवलये द्वाभ्याँ वहन्तं परम्‌ ।
अंकन्यस्तकरद्वयामृतघटं कैलासकांतं शिवं, स्वच्छाम्भोगतं नवेन्दुमुकुटाभातं त्रिनेत्रभजे ॥
मृत्युंजय महादेव त्राहि माँ शरणागतम्‌, जन्ममृत्युजरारोगै: पीड़ित कर्मबन्धनै: ॥
तावकस्त्वद्गतप्राणस्त्वच्चित्तोऽहं सदा मृड, इति विज्ञाप्य देवेशं जपेन्मृत्युंजय मनुम्‌ ॥
अथ बृहन्मन्त्र: ॐ ह्रौं जूं स: ॐ भू: भुव: स्व:। त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्‌। उव्र्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्‌। स्व: भुव: भू ॐ। स: जूं ह्रौं ॐ ॥
समर्पण एतद यथासंख्यं जपित्वा पुनन्र्यासं कृत्वा जपं भगन्महामृत्युंजयदेवताय समर्पयेत। गुह्यातिगुह्यगोपता त्व गृहाणास्मत्कृतं जपम्‌। सिद्धिर्भवतु मे देव त्वत्प्रसादान्महेश्वर ॥
प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान एवं शिक्षा केन्द्र सदर गजं बाजार मेरठ कैन्ट 09359109683

गुरुवार, 25 जुलाई 2013

2013 पूर्णिमा तिथि पर अलग-अलग श्रृंगार - काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट

काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के मुख्य कार्यपालक अधिकारी एवं एडीएम (नागरिक आपूर्ति) एसके मौर्य ने बताया कि सावन के चार सोमवार तथा पूर्णिमा तिथि पर अलग-अलग श्रृंगार होगा. प्रथम सोमवार (29 जुलाई) को भगवान शंकर के स्वरूप का श्रृंगार होगा, जबकि दूसरे सोमवार (पांच अगस्त) को शंकर-पार्वती की झांकी सजायी जाएगी. तृतीय सोमवार (12 अगस्त) को अर्धनारीश्वर एवं चौथे सोमवार (19अगस्त) को बाबा का रुद्राक्ष से श्रृंगार किया जाएगा. सावन पूर्णिमा पर शिव-पार्वती एवं गणेश प्रतिमाओं का झूला श्रृंगार होगा.
मौर्य ने बताया कि इस दौरान मंगला आरती मध्यरात्रि

बाद 2.45 बजे होगी. इसके लिए 315 रुपये फीस देनी होगी, जबकि सोमवार को यह आरती रविवार मध्यरात्रि बाद 2.30 बजे होगी और शुल्क 625 रुपये लगेगा. मध्याह्न भोग आरती में दोपहर 1.30 बजे शामिल होने के लिए 125 रुपये फीस जमा करनी होगी. इसी प्रकार शाम सात बजे सप्तर्षि आरती, रात्रि नौ बजे श्रृंगार आरती व भोर में चार बजे से दुग्धाभिषेक में हिस्सेदारी के लिए प्रत्येक श्रद्धालु को 125 रुपये जमा करने पड़ेंगे.
उन्होंने बताया कि सबसे महंगा अनुष्ठान महारुद्र होगा. इसके लिए भक्त को 26 हजार 521 रुपये खर्च करने होंगे. इसके अलावा भोर में चार बजे से रुद्राभिषेक में एक शास्त्री के जरिये अनुष्ठान कराने पर 190 रुपये, पांच शास्त्रियों के लिए 565 रुपये और 11 शास्त्रियों के लिए एक हजार 125 रुपये शुल्क देना होगा. वहीं, भोर में चार बजे से ही लघुरुद्र के लिए दो हजार 625 रुपये खर्च करने होंगे.
प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान एवं शिक्षा केन्द्र सदर गजं बाजार मेरठ कैन्ट 09359109683

मंगलवार, 23 जुलाई 2013

मेष राशि में स्थित होने पर सूर्य को उच्च का सूर्य कहा जाता है

वैदिक ज्योतिष के अनुसार मेष राशि में स्थित होने पर सूर्य को उच्च का सूर्य कहा जाता है 
कुंडली के पहले घर में उच्च का सूर्य : किसी कुंडली के पहले घर में स्थित उच्च का सूर्य शुभ होने पर जातक को अच्छा स्वास्थ्य प्रदान कर सकता है
कुंडली के दूसरे घर में उच्च का सूर्य : किसी कुंडली के दूसरे घर में स्थित उच्च का सूर्य शुभ होने पर जातक को बहुत अच्छा स्वास्थय प्रदान कर सकता है जिसके चलते ऐसे जातक सामान्यतया जीवन भर किसी भी गंभीर रोग से पीड़ित नहीं होते।

कुंडली के तीसरे घर में उच्च का सूर्य : किसी कुंडली के तीसरे घर में स्थित उच्च का सूर्य शुभ होने की स्थिति में जातक को अच्छे भाई, अच्छे मित्र, समाज में अच्छा प्रभाव, प्रभुता, साहस आदि प्रदान कर सकता है
कुंडली के चौथे घर में उच्च का सूर्य : किसी कुंडली के चौथे घर में स्थित उच्च का सूर्य शुभ होने की स्थिति में जातक को अच्छा स्वास्थ्य तथा लंबी आयु प्रदान कर सकता है जिसके चलते इस प्रकार के प्रभाव में आने वाले कुछ जातक सामान्य से लंबी आयु तक जीवित रह पाते हैं।
कुंडली के पांचवें घर में उच्च का सूर्य : किसी कुंडली के पांचवे घर में स्थित उच्च का सूर्य शुभ होने की स्थिति में जातक को सफल तथा प्रसिद्ध पिता प्रदान कर सकता है तथा ऐसे जातक की उन्नति एवम विकास में उसके पिता का बहुत योगदान रहता है। 
कुंडली के छठे घर में उच्च का सूर्य : किसी कुंडली के छठे घर में स्थित उच्च का सूर्य शुभ होने की स्थिति में जातक को व्यवसायिक सफलता प्रदान कर सकता है जिसके चलते इस प्रकार के शुभ प्रभाव में आने वाले कुछ जातक सफल डाक्टर, चिकित्सक, वकील, बैंक कर्मी, पुलिस अधिकारी आदि के रूप में जाने जाते हैं 
कुंडली के सातवें घर में उच्च का सूर्य : किसी कुंडली के सातवें घर में स्थित उच्च का सूर्य शुभ होने की स्थिति में जातक को व्यवसाय तथा व्यापार से संबंधित शुभ फल दे सकता है जिसके चलते इस प्रकार के शुभ प्रभाव में आने वाले कुछ जातक व्यापार के माध्यम से धन कमा सकते हैं।
कुंडली के आठवें घर में उच्च का सूर्य : किसी कुंडली के आठवें घर में स्थित उच्च का सूर्य शुभ होने की स्थिति में जातक को विदेश में स्थापित करवा सकता है जिसके चलते इस प्रकार के उच्च सूर्य के प्रभाव में आने वाले कुछ जातक स्थायी तौर पर विदेश में ही बस जाते हैं तथा वहां पर सफलता प्राप्त करते हैं। 
कुंडली के नौवें घर में उच्च का सूर्य : किसी कुंडली के नौवें घर में स्थित उच्च का सूर्य शुभ होने की स्थिति में जातक को बहुत धन, संपत्ति, सफलता, नेतृत्व, प्रभुता तथा किसी सरकारी अथवा निजि संस्था में उच्च पद प्रदान कर सकता है जिसके कारण इस प्रकार के शुभ प्रभाव में आने वाले कुछ जातक अपने व्यवसायिक तथा सामाजिक क्षेत्रों में बहुत सफल देखे जाते हैं। 
कुंडली के दसवें घर में उच्च का सूर्य : किसी कुंडली के दसवें घर में स्थित उच्च का सूर्य शुभ होने की स्थिति में जातक को व्यवसायिक क्षेत्र में बहुत विकास तथा सफलता प्रदान कर सकता है तथा इस प्रकार के कुछ जातक अपने व्यवसायिक क्षेत्र में बहुत बड़ी उपलब्धियां प्राप्त करके दूसरे लोगों के लिए मानदंड स्थापित करते हैं। 
कुंडली के ग्यारहवें घर में उच्च का सूर्य : किसी कुंडली के ग्यारहवें घर में स्थित उच्च का सूर्य शुभ होने की स्थिति में जातक को अधिक अथवा बहुत अधिक मात्रा में आर्थिक लाभ प्रदान कर सकता है जो व्यवसाय के माध्यम से भी आ सकता है तथा किसी अन्य माध्यम से भी। उदाहरण के लिए ऐसे कुछ जातकों को अपने माता पिता, भाई बहनों अथवा मित्रों से समय समय पर बहुत सा धन प्राप्त होता रहता है 
कुंडली के बारहवें घर में उच्च का सूर्य : किसी कुंडली के बारहवें घर में स्थित उच्च का सूर्य शुभ होने की स्थिति में जातक को स्थायी रूप से विदेश में स्थापित करवा सकता है तथा इस प्रकार के शुभ सूर्य के प्रबल प्रभाव में आने वाले कुछ जातक विदेशों में स्थापित होकर बहुत सफलता प्राप्त करते हैं 
कुंडली के प्रत्येक घर में स्थित उच्च का सूर्य कुंडली में शुभ होने की स्थिति में जातक को शुभ फल तथा अशुभ होने की स्थिति में जातक को अशुभ फल प्रदान कर सकता है।
प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान एवं शिक्षा केन्द्र सदर गजं बाजार मेरठ कैन्ट 09359109683

रविवार, 30 जून 2013

आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि की महिमा

आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि का समय शाक्य एवं शैव धर्मावलंबियों के लिए पैशाचिक, वामाचारी क्रियाओं के लिए अधिक शुभ एवं उपयुक्त होता है।

 इसमें प्रलय एवं संहार के देवता महाकाल एवं महाकाली की पूजा की जाती है। लंकापति रावन का पुत्र मेघनाद अतुलनीय शक्तियां प्राप्त करना चाहता था ताकि कोई उसे जीत ना सके….तो मेघनाद ने अपने गुरु शुक्राचार्य से परामश किया तो शुक्राचार्य ने गुप्त नवरात्रों में अपनी कुल देवी निकुम्बाला कि साधना करने को कहा,मेघनाद ने ऐसा ही किया और शक्तियां हासिल की,राम राबण युद्ध के समय केवल मेघनाद ने ही राम भगवान् सहित लक्षण जी को नागपाश मेमन बाँध कर मृत्यु के द्वार तक पअहुंचा दिया था,ये भी कहा जाता है की यदि नास्तिक की परिहास्वश इन समय मंत्र साधना कर ले तो भी उसे फल मिल ही जाता है,यही इस गुप्त नवरात्र की महिमा है,
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शनिवार, 29 जून 2013

नवां भाव या नवें भाव का मालिक राहु या केतु से ग्रसित है तो यह सौ प्रतिशत पितृदोष

अमावस्या के दिन व्यक्ति अपने पितरों को याद करते हैं और श्रद्धा भाव से उनका श्राद्ध भी करते हैं. अपने पितरों की शांति के लिए हवन आदि कराते हैं. ब्राह्मण को भोजन कराते हैं और साथ ही दान-दक्षिणा भी देते हैं. शास्त्रों के अनुसार इस तिथि के स्वामी पितृदेव हैं. पितरों की तृप्ति के लिए इस तिथि का अत्यधिक महत्व है.
वर्ष 2013 में अमावस्या तिथियाँ 
8 जुलाई सोमवार आषाढ़ - सोमवती अमावस्या
6 अगस्त मंगलवार श्रावण - भौमवती अमावस्या
5 सितंबर गुरूवार भाद्रपद अमावस
4 अक्तूबर शुक्रवार आश्विन अमावस्या
3 नवम्बर रविवार कार्तिक अमावस्या
2 दिसम्बर सोमवार मार्गशीर्ष - सोमवती अमावस
 शास्त्रों के अनुसार देवों से पहले पितरों को प्रसन्न करना चाहिए. जिन व्यक्तियों की कुण्डली में पितृ दोष हो, संतान हीन योग बन रहा हो या फिर नवम भाव में राहू नीच के होकर स्थित हो, उन व्यक्तियों को यह उपवास अवश्य रखना चाहिए. इस उपवास को करने से मनोवांछित उद्देश्य़ की प्राप्ति होती है. विष्णु पुराण के अनुसार श्रद्धा भाव से अमावस्या का उपवास रखने से पितृ्गण ही तृप्त नहीं होते, अपितु ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, अष्टवसु, वायु, विश्वेदेव, ऋषि, मनुष्य, पशु-पक्षी और सरीसृप आदि समस्त भूत प्राणी भी तृप्त होकर प्रसन्न होते है.
पितृ दोष के लिये उपाय" सोमवती अमावस्या को (जिस अमावस्या को सोमवार हो) पास के पीपल के पेड के पास जाइये,उस पीपल के पेड को एक जनेऊ दीजिये और एक जनेऊ भगवान विष्णु के नाम का उसी पीपल को दीजिये,पीपल के पेड की और भगवान विष्णु की प्रार्थना कीजिये,और एक सौ आठ परिक्रमा उस पीपल के पेड की दीजिये,हर परिक्रमा के बाद एक मिठाई जो भी आपके स्वच्छ रूप से हो पीपल को अर्पित कीजिये। परिक्रमा करते वक्त :ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करते जाइये। परिक्रमा पूरी करने के बाद फ़िर से पीपल के पेड और भगवान विष्णु के लिये प्रार्थना कीजिये और जो भी जाने अन्जाने में अपराध हुये है उनके लिये क्षमा मांगिये। सोमवती अमावस्या की पूजा से बहुत जल्दी ही उत्तम फ़लों की प्राप्ति होने लगती है।
एक और उपाय है कौओं और मछलियों को चावल और घी मिलाकर बनाये गये लड्डू हर शनिवार को दीजिये। पितर दोष किसी भी प्रकार की सिद्धि को नहीं आने देता है। सफ़लता कोशों दूर रहती है और व्यक्ति केवल भटकाव की तरफ़ ही जाता रहता है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति माता काली का उपासक है तो किसी भी प्रकार का दोष उसकी जिन्दगी से दूर रहता है। लेकिन पितर जो कि व्यक्ति की अनदेखी के कारण या अधिक आधुनिकता के प्रभाव के कारण पिशाच योनि मे चले जाते है,वे देखी रहते है,उनके दुखी रहने का कारण मुख्य यह माना जाता है कि उनके ही खून के होनहार उन्हे भूल गये है और उनकी उनके ही खून के द्वारा मान्यता नहीं दी जाती है। पितर दोष हर व्यक्ति को परेशान कर सकता है इसलिये निवारण बहुत जरूरी है।
नवम पर जब सूर्य और राहू की युति हो रही हो तो यह माना जाता है कि पितृ दोष योग बन रहा है . शास्त्र के अनुसार सूर्य तथा राहू जिस भी भाव में बैठते है, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते है . व्यक्ति की कुण्डली में एक ऎसा दोष है जो इन सब दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है, इस दोष को पितृ दोष के नाम से जाना जाता है .
कुन्डली का नवां घर धर्म का घर कहा जाता है,यह पिता का घर भी होता है,अगर किसी प्रकार से नवां घर खराब ग्रहों से ग्रसित होता है तो सूचित करता है कि पूर्वजों की इच्छायें अधूरी रह गयीं थी,जो प्राकृतिक रूप से खराब ग्रह होते है वे सूर्य मंगल शनि कहे जाते है और कुछ लगनों में अपना काम करते हैं,लेकिन राहु और केतु सभी लगनों में अपना दुष्प्रभाव देते हैं, नवां भाव,नवें भाव का मालिक ग्रह,नवां भाव चन्द्र राशि से और चन्द्र राशि से नवें भाव का मालिक अगर राहु या केतु से ग्रसित है तो यह पितृ दोष कहा जाता है। इस प्रकार का जातक हमेशा किसी न किसी प्रकार की टेंसन में रहता है,उसकी शिक्षा पूरी नही हो पाती है,वह जीविका के लिये तरसता रहता है,वह किसी न किसी प्रकार से दिमागी या शारीरिक रूप से अपंग होता है।
अगर किसी भी तरह से नवां भाव या नवें भाव का मालिक राहु या केतु से ग्रसित है तो यह सौ प्रतिशत पितृदोष के कारणों में आजाता है।
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प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान एवं शिक्षा केन्द्र सदर गजं बाजार मेरठ कैन्ट 09359109683