सोमवार, 16 सितम्बर 2013 को श्री वामन जयंती पूर्णिमांत महीना :
भाद्रपद पक्ष : शुक्ल पक्ष तिथि : द्वादशी - 23:30:57 नक्षत्र : श्रावण -
22:26:57 योग : अतिगण्ड - 17:22:07 राहुकाल : 07:48:21 - 09:19:26
अभिजीतमुहूर्त : 11:57:17 - 12:45:51
वामन भगवान कि जयन्ती 85 साल के बाद वामन भगवान कि जयन्ती और कन्या संक्रान्ति एक साथ शनिवार, 16 सितम्बर 1916 को भी कन्या संक्रान्ति थी बुधवार, 16 सितम्बर 1925 को भी कन्या संक्रान्ति थी रविवार, 16 सितम्बर 1928 को भी कन्या संक्रान्ति थी और इस दिन हि वामन भगवान कि जयन्ती भी थी 16 सितम्बर 1964 को भी कन्या संक्रान्ति थी 16 सितम्बर 1928 के बाद और 16 सितम्बर 2013 को भी कन्या संक्रान्ति के साथ साथ वामन भगवान कि जयन्ती भी है
वामन, ऋषि कश्यप तथा उनकी पत्नी अदिति के पुत्र थे। वह आदित्यों में बारहवें थे। मान्यता है कि वह इंद्र के छोटे भाई थे।
भागवत
कथा के अनुसार, असुर राज बली अत्यंत दानवीर थे। दानशीलता के कारण बली की
कीर्ति पताका के साथ-साथ प्रभाव इतना विस्तृत हो गया कि उन्होंने देवलोक पर
अधिकार कर लिया। देवलोक पर अधिकार करने के कारण इंद्र की सत्ता जाती रही।
विष्णु ने देवलोक में इंद्र का अधिकार पुन: स्थापित करने के लिए यह अवतार लिया।
बली,
विरोचन के पुत्र तथा प्रहलाद के पौत्र थे। यह भी कहा जाता है कि अपनी
तपस्या तथा शक्ति के माध्यम से बली ने तीनों लोकों पर आधिपत्य हासिल कर
लिया था।
विष्णु वामन रूप में एक बौने ब्राह्मण का वेष धारण कर बली के
पास गए और उनसे अपने रहने के लिए तीन कदम के बराबर भूमि दान में मांगी।
उनके हाथ में एक लकड़ी का छाता था। असुर गुरु शुक्राचार्य के चेताने के
बावजूद बली ने वामन को वचन दे डाला।
वामन ने अपना आकार इतना बढ़ा लिया
कि पहले ही कदम में पूरा भूलोक (पृथ्वी) नाप लिया। दूसरे कदम में देवलोक
नाप लिया। इसके पश्चात ब्रह्मा ने अपने कमंडल के जल से भगवान वामन के पांव
धोए। इसी जल से गंगा उत्पन्न हुईं। तीसरे कदम के लिए कोई भूमि बची ही नहीं।
वचन के पक्के बली ने तब वामन को तीसरा कदम रखने के लिए अपना सिर प्रस्तुत
कर दिया।
वामन बली की वचनबद्धता से अति प्रसन्न हुए। चूंकि बली के दादा
प्रह्लाद, विष्णु के परम भक्त थे इसलिए वामन (विष्णु) ने बली को पाताल लोक
देने का निश्चय किया और अपना तीसरा कदम बली के सिर पर रखा जिसके फलस्वरूप
बली पाताल लोक में पहुंच गए।
एक और कथा के अनुसार, वामन ने बली के सिर
पर अपना पैर रखकर उनको अमरत्व प्रदान कर दिया। विष्णु अपने विराट रूप में
प्रकट हुए और राजा को महाबली की उपाधि प्रदान की, क्योंकि बली ने अपनी
धर्मपरायणता तथा वचनबद्धता के कारण अपने आप को महात्मा साबित कर दिया था।
विष्णु
ने महाबली को आध्यात्मिक आकाश जाने की अनुमति दे दी जहां उनका अपने
सद्गुणी दादा प्रहलाद तथा अन्य दैवीय आत्माओं से मिलना हुआ।
वामनावतार
के रूप में विष्णु ने बली को यह पाठ दिया कि दंभ तथा अहंकार से जीवन में
कुछ हासिल नहीं होता है और यह भी कि धन-संपदा क्षणभंगुर होती है। ऐसा माना
जाता है कि विष्णु के दिए वरदान के कारण प्रति वर्ष बली धरती पर अवतरित
होते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उनकी प्रजा खुशहाल है।
इस दिन
भगवान विष्णु रूपी कृष्ण का पूजन किया जाता है तथा गरीब ब्राह्मणों का भोजन
कराएं व दान आदि दें यह व्रत करने से मौक्ष की प्राप्ति होती है घार्मिक
क्षेत्र मे उन्नति के लिए तथा बाहरी यश और समाजिक नाम प्रसिद्धि को पाने के
लिए इसका पूजन करते है विवाह दोष निवारण हेतु अथवा विवाह मे देरी हो रही
हो या सही परिवार न मिल रहा हो
ग्रह शांति -: गुरू से सम्बंधिक बाधाएं दूर होती है
जन्म राशि -: धनु और मीन राशियों के लिए गुरू का नक्षत्र तथा गुरू महादशाओं के लिए
सौंदर्य -: विशेष आर्कषक स्वरूप तथा काया के लिए
धन और समृधि -:स्थिर लक्ष्मी तथा शुद्ध लक्ष्मी के लिए
नौकरी और व्यवसाय -: उच्च पद गारिमा वाला पद लाभ दायी व्यवसाय भी प्राप्ति के लिए
प्यार -: प्रेम सम्बन्ध सफल और प्रेमी - प्रेमिकाओं की प्राप्ति होती है
शादी -: विवाह की मनसा पूर्ण होती है
प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान एवं शिक्षा केन्द्र मौबाईल नम्बर 09359109683