सोमवार, 30 सितंबर 2013

दैनिक जनवाणी समाचार पत्र मे मेरा लेख प्रकाशित हुआ दिनांक 30-9-2013 को अमावस्या के दिन र्शाद्ध कर पितृ को विदा करना चाहिए। इस बार यह अमावस्या चार अक्टूबर 2013 को पड़ रही है।

दैनिक जनवाणी समाचार पत्र मे मेरा लेख प्रकाशित हुआ दिनांक 30-9-2013 को अमावस्या के दिन र्शाद्ध कर पितृ को विदा करना चाहिए। इस बार यह अमावस्या चार अक्टूबर 2013 को पड़ रही है।
सर्वपितृमोक्ष अमावस्या के दिन लघु रुद्र का पाठ स्वयं करें या किसी योग्य पंडित से करवाएं। ये पाठ विधि-विधान पूर्वक होना चाहिए।
 - सफेद फूल, बताशे, कच्चा दूध, सफेद कपड़ा, चावल व सफेद मिठाई बहते हुए जल में प्रवाहित करें और कालसर्प दोष की शांति के लिए शेषनाग से प्रार्थना करें।
 - सुबह नहाने के बाद समीप स्थित शिव मंदिर जाएं और शिवलिंग पर तांबे का नाग चढ़ाएं। इसके बाद वहां बैठकर महामृत्युंजय मंत्र का जप करें और शिवजी से कालसर्प दोष मुक्ति के लिए प्रार्थना करें
- सर्वपितृमोक्ष अमावस्या (4 अक्टूबर 2013 , शुक्रवार) के दिन गरीबों को अपनी शक्ति के अनुसार दान करें व नवनाग स्तोत्र का पाठ करें।
 - श्राद्ध पक्ष के दौरान प्रतिदिन शाम को पीपल के वृक्ष की पूजा करें तथा पीपल के नीचे दीपक जलाएं।

शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

IndriYaani paranyahurindrayebhyah param manah

इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः ।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः ॥ – श्रीमदभगवद्गीता ३.४२
IndriYaani paranyahurindrayebhyah param manah
Mansastu para buddhiryo buddheh paratastu sah. – Shrimad Bhagvad Gita, 3.42

Implied Meaning : Here, Lord Krushna is telling about the human body, its subtle composition and its specialities. Along with the gross body, the senses, the mind, intellect , and soul together make up the human body. We can see the gross body and the senses through the gross eyes; mind, intellect and soul cannot be seen by us; however, they do exist. If we cut the body into pieces, even then we cannot see the mind; but if the body gets hurt, the mind too feels the pain, meaning the mind does exist. Similarly, intellect is subtler than the mind. For instance, if a friend incites one to drink liquor, saying consuming liquor once does not bring any harm; hence, drink it just for today, then those who possess a Saatvik (pure) intellect, immediately understand through the intellect that those addicted to drinking developed the addiction only after drinking liquor for the first time and liquor is Tamoguni (spiritually impure); hence, I do not have to drink it, while those who do not have a Saatvik intellect, gives in to the sweet talk of the friends and consumes a drink. Remember, only a Saatvik intellect is subtler than the mind and by controlling the mind, can show the right direction; otherwise the mind overpowers the intellect. It is written on a cigarette packet that ‘cigarette smoking is injurious to health’ and those who smoke, even read it; but because of the intellect not being Saatvik, mind doesn’t get controlled by it and this human body, whichshould be utilised for performing Sadhana, is destroyed through smoking. Any person who practices the mind through the intellect and provides it the right direction, is capable to indulge in one’s own welfare and the ability to indulge in universal welfare too is created in him. One who is controlled by the mind, easily passes on under the control of the senses and is trapped in the web of illusion; hence, keep practicing the mind. Those who attain victory over the mind are warriors in the true sense of the term and for this, a Saatvik intellect is a must. For the intellect to be Saatvik, acts like reading holy texts written by saints, attending Satsangs (pious company), doing Sadhana, remaining in the company of saints, keeping one’s behaviour and thoughts Saatvik, abiding as per Hindu Dharma, wearing clothes and eating Saatvik food must be followed. Whenever the mind confounds you, take the suggestions of a person spiritually more evolved than you. By and by, as the intellect keeps becoming Saatvik and mind stays controlled, our ego starts getting dissolved. Remember that ego exists because of mind and intellect, no sooner the dissolution of mind and intellect takes place, than the person immediately becomes self-realised. The principle of self is subtler than intellect; hence, to get introduced to it, carrying out this process with the intellect and ego assumes prime importance.
Meaning: Senses are known to be beyond the gross body, meaning supreme, powerful and subtle. Beyond these senses, beyond the mind is the intellect and that which is far beyond the intellect, is Atma (soul).
pt.R.K.Sharma Mo--09359109683

सोमवार, 16 सितंबर 2013

इस वर्ष 19 सितंबर 2013 को पूर्णिमा तिथि के दिन से श्राद्ध का आरंभ होगा.


भाद्रपद माह की पूर्णिमा से से आश्विन मास की अमावस्या तक का समय श्राद्ध कर्म के रुप में जाना जाता है. इस वर्ष 19 सितंबर 2013 को पूर्णिमा तिथि के दिन से श्राद्ध का आरंभ होगा. इस पितृपक्ष अवधि में पूर्वजों के लिए श्रद्धा पूर्वक किया गया दान तर्पण रुप में किया जाता है. पितृपक्ष पक्ष को  महालय या कनागत भी कहा जाता है. हिंदु धर्म मान्यता अनुसार सूर्य के कन्याराशि में आने पर पितर परलोक से उतर कर कुछ समय के लिए पृथ्वी पर अपने पुत्र - पौत्रों के यहां आते हैं.
श्रद्धा के साथ जो शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता है उसे "श्राद्ध" कहते हैं. श्राद्ध के महत्व के बारे में कई प्राचीन ग्रंथों तथा पुराणों में वर्णन मिलता है. श्राद्ध का पितरों के साथ बहुत ही घनिष्ठ संबंध है. पितरों को आहार तथा अपनी श्रद्धा पहुँचाने का एकमात्र साधन श्राद्ध है. मृतक के लिए श्रद्धा से किया गया तर्पण, पिण्ड तथा दान ही श्राद्ध कहा जाता है और जिस मृत व्यक्ति के एक वर्ष तक के सभी और्ध्व दैहिक क्रिया-कर्म सम्पन्न हो जाते हैं, उसी को "पितर" को पितर कहा जाता है.
शास्त्रों के अनुसार जिन व्यक्तियों का श्राद्ध मनाया जाता है, उनके नाम तथा गोत्र का उच्चारण करके मंत्रों द्वारा जो अन्न आदि उन्हें दिया समर्पित किया जाता है, वह उन्हें विभिन्न रुपों में प्राप्त होता है. जैसे यदि मृतक व्यक्ति को अपने कर्मों के अनुसार देव योनि मिलती है तो श्राद्ध के दिन ब्राह्मण को खिलाया गया भोजन उन्हें अमृत रुप में प्राप्त होता है. यदि पितर गन्धर्व लोक में है तो उन्हें भोजन की प्राप्ति भोग्य रुप में होती है. पशु योनि में है तो तृण रुप में, सर्प योनि में होने पर वायु रुप में, यक्ष रुप में होने पर पेय रुप में, दानव योनि में होने पर माँस रुप में, प्रेत योनि में होने पर रक्त रुप में तथा मनुष्य योनि होने पर अन्न के रुप में भोजन की प्राप्ति होती है.
अमावस्या का महत्व
पितरों के निमित्त अमावस्या तिथि में श्राद्ध व दान का विशेष महत्व है | सूर्य की सहस्र किरणों में से अमा नामक किरण प्रमुख है जिस के तेज से सूर्य समस्त लोकों को प्रकाशित करते हैं | उसी अमा में तिथि विशेष को चंद्र निवास करते हैं |इसी कारण से धर्म कार्यों में अमावस्या को विशेष महत्व दिया जाता है |पितृगण अमावस्या के दिन वायु रूप में  सूर्यास्त तक घर के द्वार पर उपस्थित रहते हैं तथा अपने स्वजनों से श्राद्ध की अभिलाषा करते हैं | पितृ पूजा करने से मनुष्य आयु ,पुत्र ,यश कीर्ति ,पुष्टि ,बल, सुख व धन धान्य प्राप्त करते हैं  |
श्राद्ध संस्कार
मृतक के लिए श्रद्धा से किया गया तर्पण, पिण्ड तथा दान ही श्राद्ध कहा जाता है और जिस मृत व्यक्ति के एक वर्ष तक के सभी और्ध्व दैहिक क्रिया-कर्म सम्पन्न हो जाते हैं, उसी को "पितर" को पितर कहा जाता है. वायु पुराण में लिखा है कि "मेरे पितर जो प्रेतरुप हैं, तिलयुक्त जौं के पिण्डों से वह तृप्त हों. साथ ही सृष्टि में हर वस्तु ब्रह्मा से लेकर तिनके तक, चाहे वह चर हो या अचर हो, मेरे द्वारा दिए जल से तृप्त हों".
श्राद्ध के मूल में उपरोक्त श्लोक की भावना छिपी हुई है. ऎसा माना जाता है कि श्राद्ध करने की परम्परा वैदिक काल के बाद से आरम्भ हुई थी. शास्त्रों में दी विधि द्वारा पितरों के लिए श्रद्धा भाव से मंत्रों के साथ दी गई दान-दक्षिणा ही श्राद्ध कहलाता है. जो कार्य पितरों के लिए "श्रद्धा" से किया जाए वह "श्राद्ध" है.

श्राद्ध का कारण
प्राचीन साहित्य के अनुसार सावन माह की पूर्णिमा से ही पितर पृथ्वी पर आ जाते हैं. वह नई आई कुशा की कोंपलों पर विराजमान हो जाते हैं. श्राद्ध अथवा पितृ पक्ष में व्यक्ति जो भी पितरों के नाम से दान तथा भोजन कराते हैं अथवा उनके नाम से जो भी निकालते हैं, उसे पितर सूक्ष्म रुप से ग्रहण करते हैं. ग्रंथों में तीन पीढि़यों तक श्राद्ध करने का विधान बताया गया है. पुराणों के अनुसार यमराज हर वर्ष श्राद्ध पक्ष में सभी जीवों को मुक्त कर देते हैं. जिससे वह अपने स्वजनों के पास जाकर तर्पण ग्रहण कर सकते हैं.

तीन पूर्वज पिता, दादा तथा परदादा को तीन देवताओं के समान माना जाता है. पिता को वसु के समान माना जाता है. रुद्र देवता को दादा के समान माना जाता है. आदित्य देवता को परदादा के समान माना जाता है. श्राद्ध के समय यही अन्य सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि माने जाते हैं. शास्त्रों के अनुसार यह श्राद्ध के दिन श्राद्ध कराने वाले के शरीर में प्रवेश करते हैं अथवा ऎसा भी माना जाता है कि श्राद्ध के समय यह वहाँ मौजूद रहते हैं और नियमानुसार उचित तरीके से कराए गए श्राद्ध से तृप्त होकर वह अपने वंशजों को सपरिवार सुख तथा समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं. श्राद्ध कर्म में उच्चारित मंत्रों तथा आहुतियों को वह अपने साथ ले जाकर अन्य पितरों तक भी पहुंचाते हैं.
--- श्राद्ध के हर कर्म में तिल की आवश्यकता होती है। श्राद्ध पक्ष में दान करने वाले को कुछ भी दान करते समय हाथ में काला तिल लेकर दान करना चाहिए।
---पितरों के निमित्त गुड़ एवं नमक का दान करना चाहिए। गरूड़ पुराण के अनुसार नमक के दान से यम का भय दूर होता है।
---पितरों को धोती एवं दुपट्टा का दान करना उत्तम माना गया है। वस्त्र दान से यमदूतों का भय समाप्त हो जाता है
---पितरों की प्रसन्नता हेतु इन चांदी, चावल, दूध वस्तुओं का दान किया जा सकता है
पितृ दोष से मिलेगी मुक्ति
--- ज्योतिष शास्त्र में सूर्य, चंद्र की पाप ग्रहों जैसे राहु और केतु से युति को पितृ दोष के रूप में व्यक्त किया गया है. इस युति से  मनुष्य जीव न भर केवल संघर्ष करता रहता है. मानसिक और भावनात्मक आघात जीवन पर्यंत उसकी परीक्षा लेते रहते हैं. पितृ पक्ष में अधोलोखित मंत्रों से, या किसी एक मंत्र से काली तिल, चावल और कुशा मिश्रित जल से तर्पण देने से घोर पितृ दोष भी शांत हो जाता है.
1. ॐ पितृदोष शमनं हीं ॐ स्वधा  2. ॐ क्रीं क्लीं सर्वपितृभ्यो स्वात्म सिद्धये ॐ फट!! 3. ॐ सर्व पितृ प्रं प्रसन्नो भव ॐ!! 4. ॐ पितृभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधानम: पितामहेभ्य: स्वाधायिभ्य: स्वधानम प्रपितामहेभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधानम: अक्षन्न पितरो मीमदन्त पितरोतीतृपन्त पितर: पितर: शुन्दध्वम ॐ पितृभ्यो नम

कौए को अर्पित भोजन            
श्राद्ध पक्ष में कौओं को आमंत्रित कर उन्हें श्राद्ध का भोजन खिलाया जाता है.  इसका एक कारण यह है कि हिन्दू पुराणों ने कौए को देवपुत्र माना है. एक कथा है कि, इन्द्र के पुत्र जयंत ने ही सबसे पहले कौए का रूप धारण किया था. त्रेता युग की घटना कुछ इस प्रकार है कि, जयंत ने कौऐ का रूप धर कर माता सीता को घायल कर दिया था. तब भगवान श्रीराम ने तिनके से ब्रह्मास्त्र चलाकर जयंत की आँख को क्षतिगग्रस्त कर दिया था. जयंत ने अपने कृत्य के लिये क्षमा मांगी तब राम ने उसे यह वरदान दिया की कि तुम्हें अर्पित किया गया भोजन पितरों को मिलेगा. बस तभी से श्राद्ध में कौओं को भोजन कराने की परंपरा चल पड़ी है.

प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान एवं शिक्षा केन्द्र मौबाईल नम्बर 09359109683

रविवार, 15 सितंबर 2013

सोमवार, 16 सितम्बर 2013 को श्री वामन जयंती वामन भगवान कि जयन्ती 85 साल के बाद वामन भगवान कि जयन्ती और कन्या संक्रान्ति एक

सोमवार, 16 सितम्बर 2013 को श्री वामन जयंती
पूर्णिमांत महीना : भाद्रपद पक्ष : शुक्ल पक्ष तिथि : द्वादशी - 23:30:57 नक्षत्र : श्रावण - 22:26:57 योग : अतिगण्ड - 17:22:07 राहुकाल : 07:48:21 - 09:19:26 अभिजीतमुहूर्त : 11:57:17 - 12:45:51
वामन भगवान कि जयन्ती 85 साल के बाद वामन भगवान कि जयन्ती और कन्या संक्रान्ति एक साथ शनिवार, 16 सितम्बर 1916 को भी कन्या संक्रान्ति थी  बुधवार, 16 सितम्बर 1925 को भी कन्या संक्रान्ति थी  रविवार, 16 सितम्बर 1928 को भी कन्या संक्रान्ति थी और इस दिन हि वामन भगवान कि जयन्ती भी थी 16 सितम्बर 1964 को भी कन्या संक्रान्ति थी 16 सितम्बर 1928 के बाद और 16 सितम्बर 2013 को भी कन्या संक्रान्ति के साथ साथ वामन भगवान कि जयन्ती भी है
वामन, ऋषि कश्यप तथा उनकी पत्नी अदिति के पुत्र थे। वह आदित्यों में बारहवें थे। मान्यता है कि वह इंद्र के छोटे भाई थे।
भागवत कथा के अनुसार, असुर राज बली अत्यंत दानवीर थे। दानशीलता के कारण बली की कीर्ति पताका के साथ-साथ प्रभाव इतना विस्तृत हो गया कि उन्होंने देवलोक पर अधिकार कर लिया। देवलोक पर अधिकार करने के कारण इंद्र की सत्ता जाती रही।
विष्णु ने देवलोक में इंद्र का अधिकार पुन: स्थापित करने के लिए यह अवतार लिया।
बली, विरोचन के पुत्र तथा प्रहलाद के पौत्र थे। यह भी कहा जाता है कि अपनी तपस्या तथा शक्ति के माध्यम से बली ने तीनों लोकों पर आधिपत्य हासिल कर लिया था।
विष्णु वामन रूप में एक बौने ब्राह्मण का वेष धारण कर बली के पास गए और उनसे अपने रहने के लिए तीन कदम के बराबर भूमि दान में मांगी। उनके हाथ में एक लकड़ी का छाता था। असुर गुरु शुक्राचार्य के चेताने के बावजूद बली ने वामन को वचन दे डाला।
वामन ने अपना आकार इतना बढ़ा लिया कि पहले ही कदम में पूरा भूलोक (पृथ्वी) नाप लिया। दूसरे कदम में देवलोक नाप लिया। इसके पश्चात ब्रह्मा ने अपने कमंडल के जल से भगवान वामन के पांव धोए। इसी जल से गंगा उत्पन्न हुईं। तीसरे कदम के लिए कोई भूमि बची ही नहीं। वचन के पक्के बली ने तब वामन को तीसरा कदम रखने के लिए अपना सिर प्रस्तुत कर दिया।
वामन बली की वचनबद्धता से अति प्रसन्न हुए। चूंकि बली के दादा प्रह्लाद, विष्णु के परम भक्त थे इसलिए वामन (विष्णु) ने बली को पाताल लोक देने का निश्चय किया और अपना तीसरा कदम बली के सिर पर रखा जिसके फलस्वरूप बली पाताल लोक में पहुंच गए।
एक और कथा के अनुसार, वामन ने बली के सिर पर अपना पैर रखकर उनको अमरत्व प्रदान कर दिया। विष्णु अपने विराट रूप में प्रकट हुए और राजा को महाबली की उपाधि प्रदान की, क्योंकि बली ने अपनी धर्मपरायणता तथा वचनबद्धता के कारण अपने आप को महात्मा साबित कर दिया था।
विष्णु ने महाबली को आध्यात्मिक आकाश जाने की अनुमति दे दी जहां उनका अपने सद्गुणी दादा प्रहलाद तथा अन्य दैवीय आत्माओं से मिलना हुआ।
वामनावतार के रूप में विष्णु ने बली को यह पाठ दिया कि दंभ तथा अहंकार से जीवन में कुछ हासिल नहीं होता है और यह भी कि धन-संपदा क्षणभंगुर होती है। ऐसा माना जाता है कि विष्णु के दिए वरदान के कारण प्रति वर्ष बली धरती पर अवतरित होते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उनकी प्रजा खुशहाल है।
इस दिन भगवान विष्णु रूपी कृष्ण का पूजन किया जाता है तथा गरीब ब्राह्मणों का भोजन कराएं व दान आदि दें यह व्रत करने से मौक्ष की प्राप्ति होती है घार्मिक क्षेत्र मे उन्नति के लिए तथा बाहरी यश और समाजिक नाम प्रसिद्धि को पाने के लिए इसका पूजन करते है विवाह दोष निवारण हेतु अथवा विवाह मे देरी हो रही हो या सही परिवार न मिल रहा हो
ग्रह शांति -: गुरू से सम्बंधिक बाधाएं दूर होती है
जन्म राशि -: धनु और मीन राशियों के लिए गुरू का नक्षत्र तथा गुरू महादशाओं के लिए
सौंदर्य -: विशेष आर्कषक स्वरूप तथा काया के लिए
धन और समृधि -:स्थिर लक्ष्मी तथा शुद्ध लक्ष्मी के लिए
नौकरी और व्यवसाय -: उच्च पद गारिमा वाला पद लाभ दायी व्यवसाय भी प्राप्ति के लिए
प्यार -: प्रेम सम्बन्ध सफल और प्रेमी - प्रेमिकाओं की प्राप्ति होती है
शादी -: विवाह की मनसा पूर्ण होती है
प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान एवं शिक्षा केन्द्र मौबाईल नम्बर 09359109683

वामन भगवान कि जयन्ती 85 साल के बाद वामन भगवान कि जयन्ती और कन्या संक्रान्ति एक साथ

सोमवार, 16 सितम्बर 2013 को श्री वामन जयंती
वामन भगवान कि जयन्ती 85 साल के बाद वामन भगवान कि जयन्ती और कन्या संक्रान्ति एक साथ 

शनिवार, 16 सितम्बर 1916 को भी कन्या संक्रान्ति थी  बुधवार, 16 सितम्बर 1925 को भी कन्या संक्रान्ति थी  रविवार, 16 सितम्बर 1928 को भी कन्या संक्रान्ति थी और इस दिन हि वामन भगवान कि जयन्ती भी थी 16 सितम्बर 1964 को भी कन्या संक्रान्ति थी 16 सितम्बर 1928 के बाद और 16 सितम्बर 2013 को भी कन्या संक्रान्ति के साथ साथ वामन भगवान कि जयन्ती भी है
 प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान एवं शिक्षा केन्द्र  मौबाईल नम्बर 09359109683