शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

साबूदाना किसी पेड़ पर नहीं ऊगता व्रत, उपवास में इसका काफी प्रयोग होता है

क्या आप जानते हैं साबूदाने की असलियत को ??
इस चमक के पीछे कितनी अपवित्रता छिपी है वह सभी को दिखायी नहीं देती। इस का अवलोकन करे।
 

आमतौर पर साबूदाना शाकाहार कहा जाता है और व्रत, उपवास में इसका काफी प्रयोग होता है। लेकिन शाकाहार होने के बावजूद भी साबूदाना पवित्र नहीं है। क्या आप इस सच्चाई को जानते हैं ?साबूदाना किसी पेड़ पर नहीं ऊगता । यह कासावा या टैपियोका नामक कन्द से बनाया जाता है । कासावा वैसे तो दक्षिण अमेरिकी पौधा है लेकिन अब भारत में यह तमिलनाडु,केरल, आन्ध्रप्रदेश और कर्नाटक में भी उगाया जाता है । केरल में इस पौधे को “कप्पा” कहा जाता है । इसकी जड को काट कर इसे बनाया जाता है जो शकरकंदी की तरह होती है इस कन्द में भरपूर स्टार्च होता है । यह सच है कि साबूदाना (Tapioca) कसावा के गूदे से बनाया जाता है परंतु इसकी निर्माण विधि इतनी अपवित्र है कि इसे शाकाहार एवं स्वास्थ्यप्रद नहीं कहा जा सकता।
साबूदाना बनाने के लिए सबसे पहले कसावा को खुले मैदान में बनी बडी बडी कुण्डियों में डाला जाता है तथा पानी डाल कर रखा जाता है और रसायनों की सहायता से उन्हें लम्बे समय तक गलाया, सड़ाया जाता है। इस प्रकार सड़ने से तैयार हुआ गूदा महीनों तक खुले आसमान के नीचे पड़ा रहता है। रात में कुण्डियों को गर्मी देने के लिए उनके आस-पास बड़े-बड़े बल्ब जलाये जाते हैं। इससे बल्ब के आस-पास उड़ने वाले कई छोटे मोटे जहरीले जीव भी इन कुण्डियों में गिर कर मर जाते हैं।
दूसरी ओर इस गूदे में पानी डाला जाता है जिससे उसमें सफेद रंग के करोड़ों लम्बे कृमि पैदा हो जाते हैं। इसके बाद इस गूदे को मजदूरों के पैरों तले रौंदा जाता है या आज कल कई जगह मशीनों से भी मसला जाता है इस प्रक्रिया में गूदे में गिरे हुए कीट पतंग तथा सफेद कृमि भी उसी में समा जाते हैं। यह प्रक्रिया कई बार दोहरायी जाती है। और फिर उनमें से प्राप्त स्टार्च को धूप में सुखाया जाता है । जब यह पदार्थ लेईनुमा हो जाता है तो मशीनों की सहायता से इसे छन्नियों पर डालकर गोलियाँ बनाई जाती हैं ,ठीक उसी तरह जैसे की बून्दी छानी जाती है ।
इन गोलियों को फिर नारियल का तेल लगी कढ़ाही में भूना जाता है और अंत में गर्म हवा से सुखाया जाता है । और मोती जैसे चमकीले दाने बनाकर साबूदाने का नाम रूप दिया जाता है
बस साबूदाना तैयार । फिर इन्हे आकार ,चमक, सफेदी के आधार पर अलग अलग छाँट लिया जाता है और बाज़ार में पहुंचा दिया जाता है । परंतु इस चमक के पीछे कितनी अपवित्रता छिपी है वह सभी को दिखायी नहीं देती।

तो चलिये उपवास के दिनों में ( उपवास करें न करें यह अलग बात हैं ) साबूदाने की स्वादिष्ट खिचड़ी ,या खीर या बर्फी खाते हुए साबूदाने की निर्माण प्रक्रिया को याद कीजिये साबूदाना एक खाद्य पदार्थ है। यह छोटे-छोटे मोती की तरह सफ़ेद और गोल होते हैं। यह सैगो पाम नामक पेड़ के तने के गूदे से बनता है। सागो, ताड़ की तरह का एक पौधा होता है। ये मूलरूप से पूर्वी अफ़्रीका का पौधा है । पकने के बाद यह अपादर्शी से हल्का पारदर्शी, नर्म और स्पंजी हो जाता है।
भारत में इसका उपयोग अधिकतर पापड़, खीर और खिचड़ी बनाने में होता है। सूप और अन्य चीज़ों को गाढ़ा करने के लिये भी इसका उपयोग होता है।

भारत में साबूदाने का उत्पादन सबसे पहले तमिलनाडु के सेलम में हुआ था। लगभग १९४३-४४ में भारत में इसका उत्पादन एक कुटीर उद्योग के रूप में हुआ था। इसमें पहले टैपियाका की जड़ों को मसल कर उसके दूध को छानकर उसे जमने देते थे। फिर उसकी छोटी छोटी गोलियां बनाकर सेंक लेते थे।
टैपियाका के उत्पादन में भारत अग्रिम देशों में है। लगभग ७०० इकाइयाँ सेलम में स्थित हैं। साबूदाना में कार्बोहाइड्रेट की प्रमुखता होती है और इसमें कुछ मात्रा में कैल्शियम व विटामिन सी भी होता है।
साबूदाना की कई किस्में बाजार में उपलब्ध हैं उनके बनाने की गुणवत्ता अलग होने पर उनके नाम बदल और गुण बदल जाते हैं अन्यथा ये एक ही प्रकार का होता है , आरारोट भी इसी का एक उत्पाद है ।
प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान एवं शिक्षा केन्द्र सदर गजं बाजार मेरठ कैन्ट 09359109683

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